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मरण का सच्चा स्वरूप :: १०३ साथ-साथ जीवन में बुढ़ापा भी आ जाता है। अनुभव-समृद्ध जीवन थकान के कारण नये-नये प्रयोग करने की हिम्मत नहीं करता । उसमें अलंबुद्धि पाती है । नया-नया पुरुषार्थ आजमाने के लिए जो नया प्राण चाहिए, वह उसमें नहीं होता। ____ यह सारी स्थिति स्वाभाविक है, अपरिहार्य है, किन्तु इसमें प्रगति का माद्दा कम होता है। इसलिए अनुभव का बढ़ा हुआ सार्वभौम साम्राज्य तोड़ने के लिए भगवान अपने परम कारुणिक किन्तु क्रान्तिकारी देवदूत को भेजता है, जिसका नाम है अंतक, यम अथवा मृत्यु । (मृत्यु में जो एक संयम होता है, पुरुषार्थ-पोषक शक्ति होती है, उसी का नाम है 'यम'। यम
और संयम एक ही धातु से बने हुए शब्द हैं। संयम में ही संस्कृति है, शक्ति है और नये-नये प्रयोग करने की हिम्मत भी ऐसे संयम के द्वारा ही खिलती है ।)
ये सारे गुण मृत्यु में हैं। मृत्यु के द्वारा केवल नया जन्म नहीं मिलता। मृत्यु के द्वारा मनुष्य संजीवन, प्राणवान बनता है और भविष्य में नये-नये स्वप्न देखने की शक्ति उसमें प्रकट होती है। इस तरह मृत्यु ही जीवन का उत्तम-से-उत्तम साथी
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१७/ मरण का सच्चा स्वरूप
'दिवस' शब्द के दो अर्थ होते हैं : एक संकुचित, दूसरा. व्यापक । सुबह से शाम तक के बारह घण्टे के प्रकाशमय विभाग को दिवस कहते हैं, दूसरे अंधेरे वाले विभाग को रात्रि ।
'दिवस' शब्द का दूसरा व्यापक अर्थ है । दिवस और रात्रि मिलकर होने वाले चौबीस घण्टों के काल विभाग को भी 'दिवस'