________________
१०८ :: परमसखा मृत्यु
पांच अथवा सात अंक के होते हैं। इन अंकों में सम्भाषण, अभिनय और गीतों के द्वारा जीवन का प्रदर्शन करने के बाद एक पर्दा आता है और उसके ऊपर उठने पर दूसरा अंक शुरू होता है। कभी-कभी दो अंकों के बीच जो घटनाएं होती हैं वे नाट्यानुकूल न होते हुए भी बतानी तो पड़ती है, इसलिए दो अंकों के बीच एक छोटा-सा प्रवेश डालते हैं, जिसे 'विष्कम्भक' कहते हैं। __ जब पर्दा गिरता है तब नटों को नवीन अंक की तैयारी करने का और वेश बदलने का अवकाश मिलता है। विष्कम्भक के द्वारा दो अंकों के घटनाक्रम के बीच की कड़ी प्रेक्षकों को बताई जाती है। जब विष्कम्भक नहीं होता तब प्रेक्षकों को कड़ियों की कल्पना ही करनी पड़ती है।
अब एक जन्म के अन्त में मृत्यु का पर्दा गिरते हो तुरन्त उसे ऊपर नहीं खींचा जाता। मृत्यु को या तो हम दो प्रकट जीवनों के बीच का एक पर्दा समझ सकते हैं अथवा विष्कम्भक । लेखन में एक वाक्य पूरा होने पर हम पूर्ण-विराम का एक बिन्दु अथवा दंड रखते हैं और किसी नव-विचार के प्रारम्भ की ओर ध्यान खींचने के लिए नयी कंडिका से उसका प्रारम्भ करते हैं। एक कंडिका का विस्तार पूरा हुना, उसका मतलब ध्यान में आया, उस मतलब को साथ लेकर आगे बढ़ने के लिए विचार की नई सांस लेना जरूरी है, ऐसा जब लगता है, तब हम नयी कंडिका शुरू करते हैं। एक-एक मृत्यु को इसी तरह हम कंडिका का अन्तर भी समझ सकते हैं और जब अध्याय बदलता है, प्रकरण बदलता है, तब भी यह परिवर्तन काल सूचक और विचार की ताजगी पैदा करने वाला प्रारम्भक बनता है। मृत्यु भी विशाल जीवन के लिए ऐसा ही एक आवश्यक परिवर्तन गिना जा सकता