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१०४ :: परमसखा मृत्यु कहते हैं । जब महीनों के और वर्षों के दिवसों की गिनती होती है तब चौबीस घण्टे के समस्त दिवस का ही विचार किया जाता
____ 'जीवन' शब्द के भी ऐसे ही दो अर्थ होते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु के क्षण तक के कालखण्ड को भी 'जीवन' कहते हैं और जीवन तथा मृत्यु दोनों को मिलाकर जो व्यापक हस्ती होती है, उसे भी 'जीवन' कहते हैं। सचमुच तो जीवन और मृत्यु दोनों को मिलाकर ही सम्पूर्ण जीवन बनता है।
हम कितने वर्ष जीयेंगे, सो कोई नहीं जानता। मृत्यु के बाद फिर से नया जन्म लेने तक कितना समय अज्ञात अंधेरे में रहेंगे, सो भी हम नहीं जानते । मृत्यु होने के बाद और नव जन्म प्राप्त होने के पहले क्या हमारा जीवन शून्यरूप ही होता है ? सही हालत कौन कह सकेगा ? केवल कल्पना ही करनी पड़ती है। ___ रात को जब हम सोते हैं, तब अपने को भूल जाते हैं । मानो हमें क्लोरोफार्म दिया गया हो या ऐसा इन्जेक्शन कि जिससे चेतना गुम हो जाय । लेकिन बहुत दफे हम सोते-सोते एक नई सृष्टि खड़ी करते हैं, जिसे स्वप्नसृष्टि कहते हैं। ___ यह स्वप्नसृष्टि क्या है, सो हम निश्चित रूप से नहीं जानते। कभी-कभी जाग्रत-सृष्टि के बिखरे हुए अंशों का प्रतिबिम्ब उसमें होता है। उसमें भी ऐसे खण्डित और अस्पष्ट चित्र मिलाकर एक नया ही अभूतपूर्व प्रकल्प्य चित्र बनाया जाता है। उसका सर्जक कौन है, सो हम नहीं जानते । हमारी उस स्वप्नसृष्टि में चाहे जितने व्यक्तियों का दर्शन होता होगा, पर सारी स्वप्नसृष्टि हमारी अकेले ही होती है। उसमें औरों को कभी प्रवेश नहीं मिलता।
इस स्वप्नसृष्टि का पारमार्थिक स्वीकार और थोड़ा चिन्तन मांडुक्य उपनिषद् में पाया जाता है। उसके काल्पनिक वर्णन