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१०२ : परमसखा मृत्यु है, उसका मैं साक्षात्कार कर सका हूं, और उसो के कारण चित्त की प्रसन्नता कायम रहती है और उसका स्वास्थ्य पर भी अच्छा असर दीख पड़ता है।
मृत्यु के बारे में एक और दिशा से सोचना जरूरी है।
मनुष्य किसी एक कल्पना से या आदर्श से प्रभावित होकर जीवन का प्रारम्भ करता है, प्रवृत्तियां शुरू करता है। इसमें आदर्श तो एक उन्नत और सार्वभौम कल्पना ही होती है । ऐसी उन्नत और सन्तोषकारक कल्पना की प्रेरणा जबरदस्त होती है और उसी के बल पर मनुष्य जीवन का पुरुषार्थ चलाता है।
पुरुषार्थ करते हुए, साधना द्वारा जीवन का प्रयोग करते हुए, मनुष्य को ठोस 'अनुभव' होने लगता है और उस अनुभव के अनुसार उसे आदर्श में परिवर्तन भी करना पड़ता है। अनुभव के द्वारा कल्पना के चन्द पंख काटे जाते हैं । कल्पना अक्सर आदर्शवाद की तरफ झकती है और अनुभव वास्तववाद का महत्व बताता है और मनुष्य को ठोस जमीन पर खड़े रहने के लिए बाध्य करता है।
जीवन में सबसे अधिक मूल्यवान वस्तु तो अनुभव ही है। . सब तरह के आदर्शों और सब उन्नत कल्पनाओं को जीवन में
प्रयोग में लाने के बाद जो अनुभव प्राप्त होता है, वही सब कल्पनाओं की अन्तिम कसौटी है। अनुभव से जो पाया, वही मनुष्य की सच्ची और अच्छी पूंजी होती है।
अनुभव का यह सारा महत्व कबूल करने के बाद कहना पड़ता है कि कल्पना में उड़ान की शक्ति होती है। पुरुषार्थ करने की हिम्मत और दृढ़ता से उसे आजमाने का प्राण अनुभव में उतना नहीं होता, जितना आदर्श कल्पना में होता है। ___ अनुभव का भार बढ़ने से मनुष्य के विचारों में और जीवन मैं परिपक्वता, शान्ति और समाधान प्रकट होते हैं सही, लेकिन