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मृत्यु का रहस्य : ६६ जीवन बनता है। दिवस रात्र की या उभयपक्ष की उपमा कइयों को नहीं जंचेगी। वे कहेंगे कि अहोरात्र १२-१२ घंटे के समान होते हैं। शुक्ल-कृष्णपक्ष १५-१५ दिन के होते हैं। जीवन-मरण का वैसा नहीं है। जीवन दीर्घकाल पर फैला हुआ, तना हुआ होता है। मृत्यु एक क्षण की चीज है। आखिरी सांस ले ली और जीना समाप्त हुआ। मृत्यु क्षणिक है। उसकी तुला या तुलना जीवन से कैसे हो सकती है ? ___ लोग कहते हैं, शुक्लपक्ष में प्रकाश होता है, कृष्णपक्ष में अंधेरा। क्या यह बात सही है ? लोग कहते हैं, दिन सफेद होता है, रात कालो। क्या यह बात भी शुद्ध सत्य है ?
जिसे हम १२ घंटे की रात कहते हैं, उसके प्रारम्भ में और अन्त में संध्या-प्रकाश होता ही है।
पूर्णिमा की रात्रि सारी प्रकाशित होती है। अमावस्या की रात्रि को चन्द्रिका का अभाव रहता है। लेकिन बाकी के दिनों में प्रकाश और अंधकार दोनों को कमोवेश स्थान है। हम इतना कह सकते हैं कि शुक्लपक्ष में शाम को चन्द्राकाश पाया जाता है कृष्णपक्ष में शाम को चन्द्र का दर्शन नहीं होता। बाकी दोनों पक्षों में प्रकाश और अंधेरा दोनों होते हैं।
हमारी जिन्दगी में भी मृत्यु के बाद हमारे उसी जीवन का उत्तरार्द्ध शुरू होता है, जो पूर्वार्द्ध की अपेक्षा व्यापक और दीर्घकालिक होता है। ___मनुष्य के मरण के बाद वह अपने समाज में जीवित रहता है। किसी का समाज छोटा होता है, किसी का बड़ा । मनुष्य अपने जीवन में जो कम करता है, विचार प्रकट करता है, ध्यान चिंतन करता है, उसका असर उसके समाज पर ही होता है। चन्द बातों में मृत्यु के बाद यह असर ज्यादा होता है, मनुष्य ने अपने जीवन में जो-जो किया, समाज के साथ सह