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जन्म, जीवन और मरण : ८७ यदृच्छया कुछ नहीं हुआ, लेकिन उसके पीछे जीव का इरादा और पसन्दगी थी, ऐसा सूचन होता है।
हमने मां के पेट में क्यों और कैसे प्रवेश किया, वहां हमारा विकास कैसे हुआ, यह भले अाज हमें मालूम नहीं है। बचपन में हमने कुदरती ढंग से श्वास लिया, मां का दूध पिया। यह सब बिना किसी संकल्प के, कुदरती प्रेरणा से, किया, ऐसा स्वीकार करे । लेकिन उम्र बढ़ी और बुद्धि जागी, तबसे हमने स्वेच्छा से श्वासोच्छ्वास चलाया, खुराक-पानी लिया, खुद का रक्षण किया और जीवन का अनुभव प्राप्त किया। उसके पीछे हमारी स्वतन्त्रता और हमारी जिम्मेदारी है (अथवा थीस्वतंत्रता और जिम्मेदारी, ये एक ही वस्तु के दो रूप हैं।) यानी हम यदि खाना बन्द कर दें, पानी पीना छोड़ दें अथवा श्वास लेने से इनकार कर दें, तो हम जिन्दा नहीं रह सकते । उसका अर्थ यह हुआ कि हम जी रहे हैं, वह स्वेच्छा से प्रयत्नपूर्वक जी रहे हैं । इसी को अपनी भाषा में कहूं तो जीना या न जीना कुदरत ने व्यक्ति के अपने हाथ में ही सौंपा है। मैं जीवन जीना न चाहूं, तो मुझपर जबरदस्ती नहीं है। जीना या न जीना, मरण स्वीकार करना या उसे टालना यह कुदरत ने अथवा कुदरत के स्वामी ने मेरे हाथ में रक्खा है, यानी हरेक मनुष्य इस रूप में 'इच्छामरणी' है । मैं जी रहा हूं, सो स्वेच्छा से जी रहा हूं। जीना या न जीना, यह कुदरत ने मेरे हाथ में सौंपा है और इसीलिए सारे जीवन के दरमियान में एक जिम्मेदार प्राणी हूं। ____जीवन के दरमियान में तालीम पाता हूं, मुझे संस्कार मिलते हैं, जीने के प्रयोग करने के अनेक मौके मुझे मिलते हैं। उनमें से बहुत-सी घटनाओं के पीछे मेरी इच्छा, मेरा संकल्प और मेरा प्रयत्न या मेरा पुरुषार्थ होता है और बाकी की