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७८ :: परमसखा मृत्यु
भारतीय जाति की श्रद्धा इस बात पर अटल है कि मृत्यु के साथ जीवन खत्म नहीं होता। मृत्यु के बाद भी जीवन किसी न-किसी रूप में चलता ही रहता है। इस चलनेवाले, स्थायी तत्त्व को हम आत्मा कहते हैं।
हम क्यों मानें कि आत्मा अचल और स्थिर तत्त्व है ? वह विभु है, अमर है, अजर है। सदा के लिए सनातन तत्त्व है। वह अनन्त है । लेकिन इसके मानी यह नहीं कि जिसका अन्त नहीं, वह गतिरूप न हो। काल अनन्त है। लेकिन वह बहता ही रहता है । कर्म का कानून सार्वभौम है। इसीलिए उसके लिए आदि-अन्त हो नहीं सकते। कार्यकारण भाव चलता ही रहता है। उसके लिए आदि या अन्त की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इसी तरह जीवन भी सनातन है और मृत्यु ही एक ऐसा तत्व है, जो देहली-दीप न्याय से इस ओर भी देख सकता है और उस ओर भी । यही कारण है कि कुदरत ने मनुष्य को जीवन के एक अंक के पूरे होने के बाद मृत्यु का अनुभव करने की सहूलियत रखी है। ___ इसीलिए मृत्यु का दुरुपयोग करना जीवन-साधना में बड़ी बाधा उत्पन्न करना है।
दुनिया मृत्यु से इतनी घबराई हुई है कि मृत्यु का परिचय पाने के लिए, उसका रहस्य सुलझाने के लिए जितना चिन्तनमनन आवश्यक है, मनुष्य जाति ने किया ही नहीं। यह चिन्तनमनन का भय और आकर्षण दोनों आसान तो हैं । मृत्यु निकल जाने के बाद ही मनुष्य इस चिन्तन के योग्य होता है । बुद्ध भगवान ने मरने की इच्छा को विभवतृष्णा कहा है और उसका निषेध किया है। ___मनु भगवान ने मृत्यु के प्रति तटस्थभाव रखने की नसीहत देते हुए कहा है :