________________
८४ :: परमसखा मृत्यु
1
था, उतनी हो साधु महाराज भी लेने लगे । औषध और अनुपान' दोनों एक-सा चलता था । एक महीने तक दवा ली और राजा की ताकत इतनी बढ़ी कि उसने एक दिन साधु से कहा, “अब ब्रह्मचर्य का पालन करना आसान नहीं ।" साधु ने कहा, “दिये हुए वचन को याद करो । वचन का पालन किये बिना चारा ही नहीं ।"
कुछ दिन के बाद राजा ने फिर वही बात छेड़ी और कहा, "बाजीकरण की प्रौषध का क्या अद्भुत प्रभाव है ! वचन कैसे पाला जा सकेगा ?" साधु ने कहा, “मैं भी तो तुम्हारे साथ वही दवा ले रहा हूं । आहार भी हम दोनों का एक-सा है ।"
राजा ने कहा, "यही तो ताज्जुब की बात है । कृपया अनुग्रह करके यह रहस्य मुझे बताइये कि आप निर्विकारी कैसे रह सकते हैं ?”
साधु ने कहा, “यथासमय वह भी तुम्हें मालूम होगा । लेकिन कल मैं कुतूहलवश तुम्हारी जन्मकुण्डली देख रहा था । लगता है कि अनिष्ट ग्रहों के कारण तुम्हें मौत का खतरा है । तुमसे कहने का मेरा विचार नहीं था, लेकिन सोचा कि तुमको श्रागाह करू तो तुम भगवान का स्मरण करोगे तो कुछ शान्ति मिलेगी ।"
दूसरे दिन से देखा गया कि राजा का चेहरा उतर गया है । वह बड़े चितित हैं। दवाई, अनुपान और आहार तो राजा और साधु वही का वही लेते थे । चार दिन के बाद साधु ने राजा से पूछा, "क्या काम - विकार पहले के जैसा ही सत
१. किसी भी दवा का, मरीज के खास रोग में, श्रच्छा असर लाने के लिए जिस चीज के साथ दवा दी जाती है, उसे अनुपान कहते हैं । अदरख का रस, शहद आदि, ऐसी चीजें अनुपान होती हैं ।