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मृत्यु का रहस्य :. ७५
येथें नाहीं झाली कुरणाची निराश
माल्या याचकास कृपेविशीं ॥ --यहां, इनके पास आये हुए किसी भी याचक की, कृपा के बारे में, निराशा नहीं हुई है। ____ मरणोत्तर जीवन और पुनर्जन्म एक चीज नहीं है। दोनों का भेद समझना चाहिए।
हम मानते हैं कि मनुष्य, मृत्यु के बाद, अपने कर्मों के अनुसार नया जन्म लेता है। अगर किसी क्रूर आदमी का देहान्त हुआ तो शायद उसे शेर या भेड़िये का जन्म मिलेगा। वहां वह अपनी क्रूरता पूरी तरह से आजमायगा।
अब अगर उस असली क्रूर मनुष्य का लड़का पिता का श्राद्ध करता है और उसे पिंड देता है तो वह किसको खिलाता है ? उस शेर को, जो क्रूर आदमी का नया जीवन है ? उस शेर की तृप्ति तो माँस से ही हो सकेगी। उस शेर को खिलाना, उसके पांव संवहन करना (पगचंपी करना) पुत्र का धर्म नहीं है । उस क्रूर आदमी का पुत्र जब पिता का श्राद्ध करता है तब वह उसके मनुष्य जीवन के मरणोत्तर विभाग को, उसके समाजगत जीवन को पुष्ट करने की कोशिश करता है। पिता के व्याघ्र जीवन से उसे मतलब नहीं है। जब किसी सज्जन के जीवन की प्रेरणा समाज हजम कर लेता है। पूरी-पूरी हजम करके समाज ऊंचा चढ़ता है, तब उस सज्जन का मरणोत्तर जीवन सम्पूर्ण हुआ, कृतार्थ हुआ, अनन्त में विलीन हुआ। यही है सच्चा मोक्षानन्द या ब्रह्मानन्द । ____एक जीवन की साधना पूरी होने पर जो कुछ भी अनुभवकीमती अनुभव-मिला उसे लेकर हम नये ताजे जीवन में प्रवेश करते हैं।
एक पुरुषार्थी भारतीय परदेश गया। वहां उसने तिजारत