Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

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Page 75
________________ ७४ :: परमसखा मृत्यु सर्वांगीण गहरा अनुभव कर सकता है। ___ अगर किसी साथी को अपने काम की पूर्व तैयारी में हम शरीक होने को बुलावें और फलभोग के समय उसे दूर करें तो उसे शिकायत करने का अधिकार रहेगा। यही न्याय है जीवन के बाद मरण के अधिकार का । किसो अंग्रेज ने सुन्दर शब्दों में कहा है-'मरण हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है।' (इट इज अवर प्रिविलिज टु डाई) अगर भगवान किसी को मौत से वंचित रहने की सजा देगा तो मनुष्य के लिए जीना दुश्वार होगा। उसकी कमाई का फल उसे न मिले तो वह अन्याय होगा। ईसाई लोगों के ग्रंथों में एक वचन हम पाते हैं-'पाप के फलस्वरूप मौत नाम की रोजी मिलती है।' (दी वेजिज़ ऑव सिन इज़ डैथ) सामान्य अर्थ में यह वचन गलत है। मरण तो सबके लिए अवश्यंभावी है। ईश्वर का वह प्रसाद है। जो पाप करते हैं वे ईश्वर के इस प्रसाद का सदुपयोग नहीं कर सकते। अध्यात्म-जाग्रति नष्ट होना ही मरण है, जिसका उक्त वाक्य में जिक्र है । पाप बढ़ने से मनुष्य की आत्मजाग्रति क्षीण होती है। उसका जीवन प्रात्मविमुख और देहात्मवादी होता है। ___ संतों और अवतारी पुरुषों ने मृत्यु पर विजय पाने की जो बात की है, वह यही है। मामूली मौत से न बुद्ध भगवान बच सके, न महावीर सबको शरीर छोड़ना ही पड़ा, लेकिन उन्होंने प्रात्मनाश रूपी मृत्यु पर विजय पाई । इसी को वे ढूंढ़ते थे। ___सामान्य जनता मृत्यु से इतनी घबराई हुई, डरी हुई, रहती है कि मृत्यु को पहचानना, उसका यथार्थ स्वरूप समझना, उसके लिए कठिन होता है । समझाने का कोई प्रयत्न ही नहीं करते, नहीं तो मृत्यु हमारा सबसे श्रेष्ठ मित्र है। उसके घर आये हुए किसी को निराशा नहीं हुई।

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