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७० :: परमसखा मृत्यु योग किया या उसकी सेवा की, उसकी भली-बुरी विरासत उसके समाज को मिलती है और इस तरह वह समाज पर असर करता रहता है । यह है उसका मरणत्तोर जीवन । ___ महावृक्षों और पर्वतों को छाया दूर तक पहुंचती है। बुद्ध भगवान और महात्मा गांधी जैसों का असर समाज में हजारों बरसों तक अपना काम करता है । इसलिए इन लोगों को हम दीर्घजीवी या चिरजीवी कहते हैं।
समूचे जीवन का विचार करते हुए यह कहना पड़ता है कि मृत्यु के इस तरफ का, पूर्व जीवन छोटा है, केवल तैयारी के जैसा है, सच्चा विशाल जीवन तो मृत्यु के बाद ही शुरू होता है । मृत्यु के पहले का जीवन पुरुषार्थी होने के कारण उसका महत्व खूब है। मृत्यु के बाद का जीवन परिणाम रूप होने से व्यापक और दीर्घकालिक होता है । इसलिए उसका भी महत्व कम नहीं। ___मृत्यु के बाद जो जीवन जीया जाता है, उसे हमारे धर्म ग्रन्थों में-उपनिषदों में नाम दिया है साम्पराय । जो लोग बच्चों के जैसे प्रज्ञान हैं, अंधे हैं, वे साम्पराय को नहीं देख सकते। 'न साम्परायः प्रतिभाति बालम ।' ___ जो ज्ञानी है, जानकार है, वह मरणोत्तर जीवन को और उसके महत्व को पहचानता है। वह कहता है कि इतने बड़े महत्व के और सुदीर्घ साम्पराय को नुकसान पहुंचे, ऐसा कार्य मैं अपने जीवन में-पूर्ण तैयारी के काल में नहीं करूंगा। बचपन में अगर क्षणिक उन्माद के कारण ब्रह्मचर्य को नष्ट किया तो मनुष्य का सारा-का-सारा गृहस्थाश्रम बिगड़ जाता है। इसलिए दीर्घदर्शी आत्महित समझने वाला कहता है कि गृहस्थाश्रम का पूरा आनन्द लेने के लिए ब्रह्मचर्य का पूर्वाश्रम मैं संयम से, शुद्ध रूप से, व्यतीत करूंगा।