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मरण की तैयारी :: ६५
जैसे-जैसे पुरुषार्थ कम होता है, वैसे-वैसे उपभोग भी कम करते जाना, यह जीने का अच्छा नियम है ।
नींद के बारे में कोई एक नियम नहीं हो सकता | चन्द लोगों की नींद कम होती है, चन्द लोगों की बढ़ती है। नोंद पर अत्याचार किये बिना नींद का प्रमाण कम करना चाहिए । जितना कम हो सके, उतना अच्छा । आहार कम हुआ तो नींद की मात्रा भी कम होनी अच्छी । बुढ़ापा ज्यादातर चिंतन के लिए है । परिश्रम कम होने के कारण भी खाली समय ज्यादा मिलता है । वह सारा समय चिंतन की ओर लगाना चाहिए । मन का व्यापार तो हमेशा चलता ही रहता है । अगर गंभीर चिंतन की ओर वह न लगाया तो बुढ़ापे में फिक्र - चिंता ही बढ़ती है या तुच्छ बातें याद करके मन उसी की जुगाली करने लगता है । जीवन के अनुभव में जो बातें उच्च, उदात्त पाई गईं, उनका स्मरण करके शांत और प्रसन्न रहना चाहिए । और साथ-साथ मानव जाति का दुःख दूर करने के तरीके ढूंढ़ने में मन को लगाना चाहिए। निवृत्ति के दिनों में मन के कई पक्षपात दूर होते हैं, सर्वहित का चिंतन बढ़ सकता है और दीर्घकाल के अनुभव के कारण विचार भी परिपक्व होते हैं । इसलिए बुढ़ापे में चिंतन की आदत बढ़ानी चाहिए ।
जब बुढ़ापा दर्शन देता है, तब मनुष्य को चाहिए कि वह अपना लेन-देन कम करे । अगर किसी से कर्जा लिया है तो वह तुरन्त दे देना चाहिए। किसी के एहसान में हैं, तो उऋण हो जाना चाहिए। किसी के मन में हमने मदद की अपेक्षा उत्पन्न की है तो समय पर वह दे देनी चाहिए। सिर पर कर्ज का बोझ रखकर जो चला जाता है, उसके लिए मोक्ष नहीं है । सन्यास लेकर कर्ज - -मुक्त होने का तरीका जब लोग आजमाने लगे, तब धर्माचार्यों ने नियम बनाया कि जो कर्जदार है, उसे