Book Title: Param Sakha Mrutyu
Author(s): Kaka Kalelkar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ ५४ :: परमसखा मृत्यु अंधी तथा पंगु लड़की को कौन संभालेगा ? प्यार से उसका जतन कौन करेगा ? पिता ने बहुत विचार किया । अनेक उपाय सोचे। उसके कुछ भी ध्यान में नहीं आया । उसने लड़की की जिस प्यार से सेवा की थी, उसी लोकोत्तर प्यार ने उसे हिम्मत दे दी । अन्त में सेवा के रूप में उसने लड़की को मरण- दान देने का संकल्प किया और उसका अमल भी किया । लड़की के जीते जिस समाज ने पिता को तनिक भी मदद नहीं की थी और उसके साथ विचार-विनिमय भी नहीं किया था, उस समाज ने, समाज के सरकारी प्रतिनिधियों ने पिता के ऊपर खून का इल्जाम लगाया । न्याय - मन्दिर में उसका विचार चला। न्यायाधीश असमंजस में पड़े । ऐसा मामला उनके सामने कभी नहीं आया था । कानून की मर्यादा के बाहर वे जा नहीं सकते थे । खूब सोचकर उन्होंने निर्णय दिया कि पिता मनुष्य- वध का दोषी तो है, किन्तु असाधारण परिस्थिति को सोचते हुए उसे क्षमा किया जाय । वृद्ध पिता मरण के किनारे पहुंचा ही था । अगर न्यायमंदिर उसे मरण की सजा देता तो शायद पिता उस सजा को हर्ष के साथ स्वीकार करता । लड़की की आखिर तक सेवा करने का समाधान उसे था ही। अपनी मृत्यु के बाद लड़की की जो विडम्बना होती, उसे बचाने के लिए उसने लड़की को मरण - दान दिया था, उसका भी उससे समाधान था । यज्ञ-कर्म पूरा करके अवभृथ स्नान करके यजमान जिस कृतकृत्यता का समाधान अनुभव करता है, वही समाधान उसे मिला था । समाज या न्याय - मंदिर क्या कहता है, इसकी उसे चिन्ता नही थी । लेकिन समाज का हित सोचने वाले, समाज-धर्म की मीमांसा करनेवाले, हम क्या कहते हैं ? क्या हम न्यायाधीश

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160