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मरण-दान :: ५१ को वेदना देखी नहीं जाती थी। मैंने अपनी राय तय कर ली। ___गाँधीजी ने एक डाक्टर को बुलाया। उसने ऐसा एक इंजेक्शन दिया कि एक क्षण के अन्दर बछड़ा शान्त हो गया
और उसकी जीवन यात्रा समाप्त हुई। ___ गांधीजी ने यह सारा किस्सा अखबार में छाप दिया और हिन्दू जगत में बड़ी खलबली मच गई कि महात्माजी ने गौहत्या का पाप किया। उस पर गाँधीजी को अनेक लेख लिखने पड़े और तब वह प्रकरण शान्त हुआ।
सरदार वल्लभभाई ने अपनी राय दी थी कि बछड़ा आपही-आप चार-छः दिन में मर जायगा। उसे जल्दी छुड़ाने से आप नाहक टीका-टिप्पणी मोल लेंगे और अब जो हम फंड इकट्ठा करने अहमदाबाद, बम्बई, सूरत जा रहे हैं, उसमें बाधा आयगी। गाँधीजी ने इतना ही कहा, “बात सही है । लेकिन यह धर्म का जो सवाल है। बछड़े के प्रति हमारा जो धर्म है, उससे हम विमुख कैसे हो सकते हैं ?"
धर्म के बारे में गांधीजी से चर्चा न करने का वल्लभभाई का निश्चय था, वह चुपचाप चले गए।
जानवरों के बारे में, खास करके घर में प्यार से रक्खे हुए पालतू जानवरों के बारे में, मरण-दान के कर्तव्य को स्वीकार करना इतना कठिन नहीं है। अगर ऊपर के किस्से में गाय के बछड़े का सवाल नहीं होता, दूसरे किसी प्राणी का होता तो । समाज में इतना होहल्ला नहीं मचता । लोग अपनी बुद्धि चला कर मरण-दान की बात शायद आसानी से मान जाते।
लेकिन मनुष्य को विशिष्ट परिस्थिति में मरण-दान देना विहित या धर्म्य है या नहीं, यह सवाल बड़ा पेचीदा है। - पालतू जानवर हमारा प्रेम समझ सकता है। प्रेम करता भी है। लेकिन न वह अपनी परिस्थिति पूरी तरह से समझ