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२२ :: परमसखा मृत्यु और हम शिकारी कुत्ते से डरे हुए हिरन या खरगोश की तरह आगे-आगे दौड़ते रहें, यह मनुष्य की प्रतिष्ठा को कैसे शोभा दे सकता है ? मरण आने पर हमारे पास उसके स्वागत के लिए फूलों का हार तैयार होना ही चाहिए । जीवन का कर्तव्य समझने वाले मनुष्य के लिए ही मनु भगवान ने कहा है :
नाभिनन्देत, नाभिनन्देत जीवितम् । कालमेव प्रतीक्षेत, निर्देशं भृतको यथा ।
३ / मृत्यु का तर्पण : १
मरण इष्ट है या अनिष्ट सब कोई कहेंगे कि मरण सर्वथा अनिष्ट है। लेकिन क्या यह आवाज सही है ? मनुष्य को अपना और अपने आत्मीयों का मरण भले ही अनिष्ट मालूम होता हो, लेकिन उसे दूसरे लोगों के मरने पर विशेष एतराज नहीं दीख पड़ता।
व्यापक दृष्टि से देखा जाय, तो मनुष्य आहार के लिए, शिकार के लिए या मनोविनोद के लिए जिन पशु-पक्षियों को मारता है, उनका मरण तो उसे इष्ट ही मालूम होता है । जब हम कोई सड़ी चीज सुखाने के लिए धूप में रख देते हैं, तब हम उसमें पैदा हुए जन्तुओं का मरण ही चाहते हैं। जब हम पीने का पानी उबालते हैं, तब हम उसके अंदर रहने वाले असंख्य जन्तुओं का मरण ही चाहते हैं । डाक्टर लोग जब जन्तुनाशक (एंटीसेप्टिक) दवाओं का उपभोग करते हैं, तब वे पांच-दस या सौ-पचास ही नहीं, बल्कि कोट्यावधि जन्तुओं का संहार चाहते हैं।
इस तरह, यदि देखा जाय तो हम मरण कदम-कदम पर चाहते हैं, मरण की सहायता लेते हैं और मरण के लिए पूरा