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४६ :: परमसखा मृत्यु
आत्महत्या अथवा स्वेच्छा-स्वीकृत मरण का यहां पर कानूनी दृष्टि से विचार नहीं किया है। कानून तो समाज की बहुजनमान्य-कल्पना को अथवा उसके बहुजन-स्वीकृत आदर्शों को दृढ़ करता है। सामाजिक प्रादर्श का विवेचन कानून के पीछे-पीछे नहीं चल सकता । कानून को ही आदर्श का अनुसरण करना चाहिए। ____एक जापानी वीर अपने शरीर पर तरह-तरह के बम बांधकर वायुयान में सवार हुआ और जब वह वायुयान आकाश में शत्रु के किसी जहाज के ठीक ऊपर आया तब वह ऊपर से जहाज के फनेल में कूद पड़ा और इस तरह उसने शत्रु के जहाज का, और साथ-साथ अपना भी नाश कर दिया, ऐसा वर्णन पिछले युद्ध में कहीं पढ़ा था। ऐसी वीरता दिखानेवाले वीरों की जमात को 'स्विसाइड स्क्वैड' कहते हैं। महाभारत में भी संशप्तक-दल का जिक्र आता है। ये लोग भारतीय नहीं थे । जब वे लोग लड़ने जाते थे तब जिन्दा न लौटने का प्रण करके ही जाते थे । यह भी 'स्विसाइड स्क्वैड' के जैसा ही दल था। ___ ऐसे स्वेच्छा-मरण की समाज तारीफ करता है। ऐसे वीरों के लिए वीरगान बनाए जाते हैं । आत्महत्या कहकर उसकी कभी किसी ने निन्दा नहीं की है। मामूली युद्ध में हरएक आदमी मरता ही है, सो नहीं । जो युद्ध में शरीक होता है, वह मौत का खतरा उठाता है। लेकिन 'स्विसाइड स्क्वैड' में तो मरण निश्चित ही है, तो भी उसे कोई आत्महत्या का अपराध नहीं कहता है, क्योंकि उसमें प्रेरणा होती है क्षात्र-धर्म द्वारा सर्वोत्तम राष्ट्रसेवा करने की। ___ गांधीजी जिसे आमरण अनशन कहते थे, उसमें और 'मारणान्तिक सल्लेखना' में बड़ा फर्क है । आमरण अनशन की बुनि