Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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शंकर से परवर्ती होते, तो शंकर के अद्वैतवाद का खण्डन किए बिना नहीं रहते, इसलिए हरिभद्र शंकराचार्य के पूर्व हुए हैं, पश्चात् नहीं ।
मुनि जिनविजयजी के मत से अनेकान्त जयपताका आदि ग्रन्थों में परवर्ती अनेक दार्शनिकों के मत ही नहीं लिए हैं, अपितु उन दार्शनिकों के नामोल्लेख भी किए हैं, पर इन दार्शनिकों का कालक्रम हरिभद्र के कालक्रम से काफी अन्तर से है, जैसे- धर्मकीर्ति (ई. सन् 600 से 650 ) कुमारिल ( 650 से 720 ई.) 120 चीन के दार्शनिक "इत्सिन" ने अपनी पुस्तक में भर्तृहरि की मृत्यु का समय वि. सं. 650 लिखा है।2" कुमारिल ने अपनी रचना 'वाक्यपडीय' और 'तन्त्रवार्तिक' में भर्तृहरि की आलोचना की है।22
कुमारिल ने दिङ्नाग और धर्मकीर्ति के विचारों की समालोचना भी की है। 23 अतः कुमारिल का प्रादुर्भाव हुआ है। प्रो. के. वी. पाठक ने अपने निबन्ध " भर्तृहरि व कुमारिल" में कुमारिल को 8 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध को होने की पुष्टि की है। 24
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हरिभद्र ने 'शास्त्रवार्त्ता - समुच्चय' में एक श्लोक की स्वोपज्ञ व्याख्या में " आह च कुमारिलादिः "इस प्रकार स्वयं ने प्रत्यक्ष कुमारिल का नामोल्लेख किया है। ज्ञातव्य हो कि जैसे हरिभद्र ने भर्तृहरि की आलोचना की है, वैसे ही भर्तृहरि के आलोचक कुमारिल की भी आलोचना की है, प्रो. के. वी. पाठक के मतानुसार कुमारिल का समय 8 वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध मान लिया जाए तो हरिभद्र का समय भी यही मान लेना चाहिए ।
हरिभद्र का नाम-स्मरण उद्योतनसूरि द्वारा रचित कुवलयमाला में " भवविरह" के रूप में किया गया है। उद्योतनसूरि का समय ई. सन् 8 वीं शताब्दी का तीसरा भाग निश्चित है, अर्थात् (विक्रम की 8 वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध) तब हरिभद्र का समय उसके प्रथमार्द्ध या मध्यभाग में मानना पड़ेगा। इस बात को डॉ. सागरमल जैन ने भी पंचाशड्ढ - प्रकरण की भूमिका में हरिभद्र के समय के विषय में स्वीकार किया है। 25
डॉ. सागरमल जैन ने अनेकशः विद्वानों के मतों का अन्वेषण कर अन्ततः मुनि जिनविजयजी के मत का ही अनुमोदन करते हुए अपनी सहमति प्रकट की कि हरिभद्र के समय के सम्बन्ध में विद्वानों को मुनि जिनविजयजी के निर्णय को मान्य करना होगा। 26
20 हरिभद्र के प्राकृतकथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, शास्त्री नेमिचन्द, पृ. 43
21 मुनि जिनविजयजी - हरिभद्रस्य समय निर्णय, पृ. 49 22 मुनि जिनविजयजी - हरिभद्रस्य समय निर्णय, पृ. 50
23 मुनि जिनविजयजी - हरिभद्रस्य समय निर्णय, पृ. 51
24 मुनि जिनविजयजी - हरिभद्रस्य समय निर्णय, पृ. 51 25 पंचाशक प्रकरण (भूमिका), डॉ. सागरमल जैन, पृ. XVI
26 पंचाशक प्रकरण (भूमिका), डॉ. सागरमल जैन, पृ. XVI
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