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॥९॥
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पचनन्दिपञ्चविंशतिका । तथा जिस प्रतिमाके धारण करनेसे आजन्म वस्त्री तथा परस्त्री दोनोंका त्याग करना पड़ता है बह ब्रह्मचर्यनामक सातवींप्रतिमा है तथा किसीप्रकार धनादिका उपार्जन न करना आरम्भत्यागनामक आठवीप्रतिमा है और जिसप्रतिमाके धारण करते समय धनधान्य दासीदासादिका त्याग किया जाता है वह नवमी परिग्रहत्यागनामक प्रतिमा है तथा घरके कामोंमें और व्यापारमें (ऐसा करना चाहिये ऐसा नहीं करना चाहिये) इत्यादि अनु. मतिका न देना अनुमातत्यागनामक दशमीप्रतिमा है तथा ग्यारहवीप्रतिमा उसको कहते हैं कि जहाँपर अपने उद्देशसे भोजन न किया गया हो ऐसे गृहस्थोंके घरमें मौनसहित भिक्षापूर्वक आहार करना-इसप्रकार ये ग्यारह व्रत (प्रतिमा) श्रावकोंके हैं, इन सब व्रतोंमें भी प्रथम सप्तव्यसनोंका त्याग अवश्य कर देना चाहिये क्योंकि व्यसनोंके बिना त्याग किये एक भी प्रतिमा धारण नहीं की जा सक्ती ॥१४॥
शार्दूल विक्रीड़ित । यत्प्रोक्तं प्रतिमाभिरेभिरभितो विस्तारिभिः सूरिभितिव्यं तदुपासकाध्ययनतो गहिव्रतं विस्तरात् । तत्रापि व्यसनोज्झनं यदि तदप्यासून्यतेऽत्रैवयत्तन्मूलः सकलः सतां व्रतविधिर्याति प्रतिष्ठां पराम् ॥१५॥
अर्थः-समन्तभद्र आदि बड़े २ आचार्योंने ग्यारह प्रतिमा तथा और भी गृहस्थोंके व्रत अत्यन्त विस्तारकेसाथ अपने २ ग्रन्थोंमें वर्णन किये हैं इसलिये उपासकाध्ययनसे इनका स्वरूप विस्तारसे जानना चाहिये
और उन्हीं आचार्योंने जूआ खेलना १ मद्यपीना २ मांस खाना ३ आदि सातो व्यसनोंका भलीभांति खरूप दिखाकर उनके त्यागकी अच्छी तरह विधि बतलाई है तथा इसग्रन्थमें भी उन सप्तव्यसनोंके त्यागका वर्णन किया जायगा क्योंकि सप्तव्यसनोंके त्यागसे ही सज्जनोंकी व्रतविधि अत्यन्त प्रतिष्ठाको प्राप्तकरती है बिना व्यसनोंके त्यागके नहीं ॥ १५ ॥
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