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श्रोसवाल जाति का इतिहास
पुराने ऐतिहासिक कागज पत्रों को देखा है, उनसे यह बात छिपी हुई नहीं है कि राजस्थान के कई राज्यों की स्थापना में ओसवाल जाति के वीरों एवं मुत्सहियों ने बहुत बड़ा हाथ बटाया है। इतना ही नहीं, जब-जब ये राज्य विपत्ति के घोर बादलों से तथा निराशा के विषाक्त वायुमण्डल से आवृत्त हुए हैं, उस समय ओसवाल जाति के वीरों एवम् मुत्सहियों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ देकर इनकी रक्षा की है। मध्य युग के कई नरेशों ने अपने खास रक्कों में उनकी अपर्व सेवाओं को मुक्तकंठ से स्वीकार किया है, और उन्होंने इन्हें राज्य का रक्षक मानने में तनिक भी संकोच नहीं किया है । अब हम नीचे की पंक्तियों में आधुनिक ऐतिहासिक अन्वेषणाओं के प्रकाश में यह दिखलाना चाहते हैं कि ओसवाल जाति के मुत्सहियों एवं वीरों ने जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर, इन्दौर, किशनगढ़ आदि राज्यों के राजनैतिक और सैनिक क्षेत्रों में कैसे २ कमाल कर दिखलाये हैं।
जोधपुर
ओसवाल जाति का सब से प्रधान केन्द्र जोधपुर रहा है। इस जाति के लोगों ने जोधपुर राज्य के लिये जो महान कार्य किये हैं वे इतिहासवेत्ताओं से छिपे हुए नहीं हैं । जोधपुर नगर के बसाने वाले राव जोधाजी से हमारे पाठक भली प्रकार परिचित हैं । ईसवी सन् की पन्द्रहवीं सदी में जब राव जोधाजी का उदय हो रहा था, उस समय राव समरोजी और उनके पुत्र राव नरोजीभण्डारी ने उनको बड़ा सहयोग दिया था। ये दोनों वीर बड़े बहादुर और रण कुशल थे। मूलतः ये महाप्रतापी चौहान वंश के थे। जैनाचार्य ने इनके पितामह या प्रपितामह को जैनधर्म में दीक्षित किया था। जैनधर्म में दीक्षित होने के कारण ये लोग ओसवाल भण्डारी के नाम से मशहूर हुए । इन प्रसिद्ध वीरों के पूर्वजों के हाथ में बहुत दिनों तक नाडोल नामक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान का राज्य रहा । समरोजी भण्डारी नाडोल के चौहान-वंश के राजाओं के वंशज थे। जब राव जोधाजी के पिता राव रिणमलजी चित्तौड़ में मारे गये और राव जोधाजी अपने ७०० सिपाहियों को लेकर मेवाड़ से चल पड़े उस समय उदयपुर के महाराणाजी ने जोधाजी का पीछा करने के लिये एक बड़ी सेना के साथ चूण्डाजी नामक एक सिसोदिया सरदार को भेजा । रास्ते में जोधाजी की सेना पर कई आक्रमण किये गये, इससे उनके कई वीर सैनिक काम आये । मारवाड़ पहुँचते २ जोधाजी के पास केवल सात सिपाही शेष रह गये । वे केवल इन्हीं सात सवारों को लेकर जीलवाड़े नामक स्थान पर पहुँचे । उस वक्त राव समराजी भण्डारी उस स्थान पर थे । उन्हें जोधाजी का पक्ष न्ययायुक्त जंचा। इसलिए उन्होंने राव जोधाजी का साथ देना अपना कर्त्तव्य समझा । उन्होंने राव जोधाजी से अरज की कि आप मारवाड़ की ओर पधारिये और मैं राणाजी की फौज को रोक रक्यूँगा । इतना ही नहीं, उन्होंने अपने पुत्र नराजी भण्डारी को ५० सवार देकर राव जोधाजी के साथ रवाना कर दिया । कहने की आवश्यकता नहीं कि राव जोधाजी और
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