Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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जीव-शरीरका.मेहामेद। "माया भन्ते! काये मजे काय?" "गोयमामायापिकाये मषिकाये।" "कवि भन्ते ! काये महर्षि काये" "गोयमा! कवि पिकाये महर्षि पिकाये।" एवं पकेके पुच्छा।
"गोयमा सबिते विकाये मधिसेविकाये"। भग० १३.७.४९५। उपर्युक्त संवाद से स्पष्ट है कि भ० महावीरने गौतमके प्रभके उत्तरमें आत्माको शरीरसे मभिन्न मी कहा है और उससे भिन्न मी कहा है। ऐसा कहनेपर और दो प्रश्न उपस्थित होते हैं कि यदि शरीर आत्मा से अमिन्न है तो आत्माकी तरह यह अरूपि भी होना चाहिए और सचेतम मी । इन प्रश्नोंका उत्तर मी स्पष्टरूपसे दिया गया है कि काय अर्थात् शरीर रुपि भी है और अरूपि मी । शरीर संचेतन मी है और अचेतन भी ।
जब शरीरको आरमासे पृथक् माना जाता है तब वह रूपि और अचेतन है। और जब शरीर को आत्मासे अमिन माना जाता है तब शरीर अरूपि और सचेतन है। __ भगवान् बुद्धके मतसे यदि शरीरको आत्मासे मिन माना जाय तब प्रमचर्यवास संभव नहीं। और यदि अमिन माना जाय तब मी-प्रमचर्यवास संभव नहीं । अत एव इन दोनों जन्तों को छोडकर भगवान् बुद्धने मध्यममार्गका उपदेश दिया और शरीरके मेदामेदके प्रमको अव्याक्त बताया
"जी सरीरं ति. मिक्स विडिया सति प्रावरियालोमोति । स जीवं म सरीर तिचा मिक्नु! दिडिया सति ब्रह्मचरियवासो महोति । एते ते मिक्लु। उमो मन्ते अनुपगम्म मजन तथागतो धम्मं देखेति-" संयुत्तXII 135
किन्तु भगवान् महावीरने इस विषय में मध्यममार्ग- अनेकान्तवादका आश्रय लेकर उपयुक दोनों विरोधी वादोंका समन्वय किया'। यदि आस्मा शरीरसे अत्यन्त मिल माना जाय तब कायत कोका फल उसे नहीं मिलना चाहिए । अस्सन्तमेद माननेपर इस प्रकार मरुतागम दोषकी आपचि है। और यदि असन्त अभिम माना जाय तब शरीर का दाह हो जानेपर बात्मा भी नष्ट होगा जिससे परलोक संभव नहीं रहेगा। इस प्रकार कृतप्रणाश दोष की आपत्ति होगी । अत एव इन्हीं दोनों दोषोंको देखकर भगवान् बुद्धने कह दिया कि मेद्र पक्ष और बनेद पक्ष ये दोनों ठीक नहीं हैं। जब कि भ० महावीरने दोनों विरोधी वादोंका समन्वय किया और मेद और अमेद दोनों पक्षोंका खीकार किया । एकान्त मेद और बमेद माननेपर जो दोष. होत है वे उभयवाद माननेपर नहीं होते । जीव और शरीरका मेद इसलिये मानना चाहिए कि शरीर का नाश हो जानेपर मी वात्मा दूसरे जन्ममें मौजुद राती है या सिंहावसाने शरीरी भारमा मी होती है । बमेद इसलिये मानना चाहिए कि संसारावस्थामें. शरीर और मामाका क्षीरनीरवत् या अमिलोहपिण्डवत् तादात्म्य होता है इसी लिये कायसे किसी वस्तुका स्पर्श होनेपर बात्मामें संवेदन होता है और कायिक कर्मका विपाक गामा होता है।
भगवतीसूत्रमें जीवके परिणाम दश गिनाए है यथा-.....
गतिपरिणाम, इन्द्रियपरिणाम, कषायपरिणाम, लेश्यापरिणाम, पोगपरिणाम, उपयोगपरिमाम, जानपरिणाम, वर्शनपरिणाम, चारित्रपरिणाम और वेदपरिणाम । - म० ११.१.५११३
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