Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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१ होति तथागतो परमरणाति? २. होति तथागतो परंमरणाति?
होति चनोतिष तथागतो परंमरणाति ? ४ नेव होति ननहोति तथागतो परमरणाति?' इन अव्याकृत प्रश्नोंके अतिरिक्त भी अन्य प्रश्न त्रिपिटकमें ऐसे हैं जो उक्त चार पक्षोंको ही सिद्ध करते हैं
१ सयंकतं दुपति? २परंकवं दुक्खंति? ३ सयंकतं परंकतंच दुक्खंति! ४ भसयंकार अपरकार दुवति?
-संयुत्तनि XII. 17. त्रिपिटकगत संजयबेलट्ठिपुत्तके मतवर्णनको देखनेसे भी यही सिद्ध होता है कि तब तकमें वही चार पक्ष स्थिर थे। संजय विक्षेपवादी था अत एव निम किषित किसी विषयमें अपना निश्चित मत प्रकट करता न था'।
१ परलोक है! २ परलोक नहीं हैं। ३ परलोक है और नहीं है! ४ परलोक है ऐसा नहीं, नहीं है ऐसा नहीं ! १ औपपातिक है। २ औपपातिक नहीं है। ३ औपपातिक है और नहीं है। १ औपपातिक न है, न नहीं हैं। १ मुक्त दुकत कर्मका फल है। २
, फल नहीं है:
है और नहीं है!
(१)
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(१) १ मरणानन्तर तथागत है !
नहीं है। ,है और नहीं है।
न है और न नहीं है। जैन आगोंमें भी ऐसे कई पदार्थोंका वर्णन मिलता है जिनमें लिपि-निषेष-उमस और न भयके आधारपर चार विकल्प किये गये हैं। यथा-- (१) १ आस्मारंभ
२ परारंभ
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संयुत्तनिकापXLIV.
दीपलिकाप-सामम्म
त
।
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