Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 519
________________ १२८ -चका प्रारंभ -का प्रतिपाच - का प्रयोजन अनेकान् आधाराधेयभाव मास मानावादिसमय आकम्बन freerefore अनुमान पा आगम के १३७ कार्य १४३, १४४ आर्ष इन्द्रिय का माध्यकारित्व इन्द्रियज्ञान ईश्वर -कारणवाद उत्पति - निराकरण उत्पाद उपमान 關 का प्रामाण्य -काय उपमिति उपलब्धि उपलम्भ म -का पृथक्प्रामाण्य अनेका का फछ का प्रयोजन उपादानपाचा उपेक्षणीय वारूप कवासामान्य एकाकारपरामर्श कान्वमेव पेन्द्रियकशान मौपम्य करण १३. टिपणगत शब्दों और विषयोंकी सूची । Jain Education International १२९, 1RS, 97 १३२, कल्पनाज्ञान १३७ कम्पनापोड 141,100,141, १२३ 111 ११,१२० कार्यकारणभाव १७३,१०१, २०७, २४६ २४३ १४१ १६४ का १९० - वासमाकृत का महति ममेव -की संस्थता और किया १११ किमकारक २८१ २१ १५८ सवज्ञान १०१,२०० सचि १४३ समस *#* - संमदाबस्थानीय - समकालमें नहीं -का दो प्रकारचे विचार १०६ -ज्ञान और देवमें नहीं २३५ - प्रमाण और फल में नहीं २६६ वाकभन १२६ २१७ गवाक्ष २५४ | देखो, सामान्य विद २५९ २५९ ज्ञान १६० शानदर्शनोपयोग २२८ गुण २२७ गुणगुणी २४९ गुरुवारोपविच २४९ प्राण १२७, एकता २५४|शातुव्यापार मायिकता तरव १९२, १२० ग्राहक १२५,१३५ मा २५९ ग्राहकभाव २५०,१५८, वि २५० विद्य PVC Four १९४ १३ -व्यवहार में नानामतभेद १५९ दर्शन २६२,२८१ दुर्भणस्व २१ १४९ व १२३ -की मान्यताका विकासक्रम २८० यानुपलब्धि -मिकता, भमिकता भीर २४९ १४३,१७९,२५४२०३ २०२,२७९ वाच्य २८२ तिप --भाव वा अभावरूप २४४ तिर्यग्सामान्य का प्रामाण्य १५१, परोक्ष में अन्तर्भाव २६८, व्यामि २०० प १०३ दोष २२८ मुख्य २४४ For Private & Personal Use Only २०२ व्यव १५०व्य २३५ किम १३५ धर्म १९७,१७१ धर्म-धी २०१ ध २५७ नमस्कार पति और श्रीचय नय २०६ ་་་ १५१ १५५ २५१, २५८ ૨૬ १६३, ब्रम्यजनकभा १११ १०९,२५६१५० १४०,१४२५३, मानव १५३ योग १५३ १८३ १५०, २०१, २७१ जय मौर भाव १९५,२१५,२०१ २७० दर्शनान्तरोंमें नयामास की पा २६५ १५९ १५७ 119,182,184,908, १५८,१६०, २०३ १९२ १८१ २१५ 189,912 १५५ २१८ १४२, १४४ २१८ १३७ १८४ २३२ १३२ १५४ १८६ १२७ २७७ १६१ २०९ www.jainelibrary.org

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