Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

Previous | Next

Page 518
________________ १३. टिप्पणगत शब्दों और विषयोंकी सूची। १९५ १५. जगृहीताप्रापणं १५९/मन्ययानुपपति श्यमंवयबीके विषय में नाबा अग्रह १५० -अविनाभावनियामिका २७१ मत १९, का विनाश १९१, भवत्वज्ञान १५० भन्यापोर २५१,१६७ जैनमत १९५, बौद-चमकपतिदेशबाव २२०,२२१, अपूर्व अर्थका मतलब ११९ मा १९५, मीमांसकमत १९५, २२५,२२० अपूर्व प्रत्यक्षकी चर्चा १९५, का भएकारकसन्दोहोत्याचवा १५॥ देखो, शक्ति भनुमान १९१, अनेकान्त अदुकारणारब्धव १५. गपूर्थिक १२८1१९ १९८ जनाहिसे ग्रहण २००, २१२ अपौरुषेयत्व भनित्य हैमाश्यानुपकब्धि २५८ १८५ अश्वास १७० अप्रतिमा २४७ भवाब २१४ अनधिगतार्षगन्तव १५मवाधित भविधा १५७,११५,१७०,१०५, १५० भगव्यवसाय १५७/मभाव, बनर्थ अविनाभाव -प्रमाणका पार्धक्य २५/भमाकारम्बाधि २६५ -बौसमत भावाव्यतिरिक | के निवामककी चर्चा २७॥ अनिर्वचनीयल्याति ११५,१९५ २०-व्यवहार २२९, प्रमेय २.-यवहार परमविसंवाद १५०,१६ भनुपकन्धि २२९ - और वहाहप्रमाण २५१ अविसंवादिस्व १५० inअमिधेवप्रयोजन १२४,२५, भव्यपदेश्य १५, भव्यभिचारि १५० अनुभूति १५०,११० मधुतसिद्धि असल्याति बनुमान असयवहार २२९,२५० -मान्त किस रहिसे ॥ के मेद भसम्बग्ज्ञान -प्रामाण्य २०३,२१२, " भौकिक -काविषवसामान्ब२१२,२३६ भागम से शान्दादिमित्र है २१ अर्थकिवाकारित्व १८,२१२, प्रामाण्यनिसय १३४ २१९, -परोक्षान्तर्गत २११.मर्थग्रहण -में उपमानका समावेश २५५ २६८, में उपमामकामवीर मर्षपर्याय १८२ -परोक्षका मेद . २५० २२५, मेंबर्यापतिका सन्तोष अप्राकव्य १५४ -पुथा प्रमाण नही २०१ २२९, में प्रत्यभिज्ञाका मत-मरूपता -गुरवचनके प्रामाण्ड में हेतु मोव २५८,कशाम्त्याचार्यको मर्याकार २७५ सार्थ-पार्वमेव असमत है अापत्ति २१९,२२९ मारमा २९९, के अवयव २१९ मौकिकल्याति मात्मव्यापाररूप प्रमाण १५३ सेबाक्षिका प्रह २७ बलौकिकार्य -से सुखदुःखादिमित्र १५५ -पक्षधर्मत्वाबाहेमलक मौकिकार्यक्याति के विषय में चार्वाक २०० २७२, का चार्वाकसमत दूषण अवधि १.०,100 -सिदि २७२ अषभास -परिमाण अनुपसाब १.८ भवषव-भवबबीका ऐक्य १४२, प्रत्यक्ष,मनुमान २७९ १४४ -सायिक, व्यावहारिक २०१ १४ काल्पनिक १९२ भास्मस्माति ११,१५,१९, का धर्मकीविजन और अवयवी १२,1971९९,२०१, १७५ उसका उत्तर २८२, सत्ता में नागार्जुनादि की भादिवाक्य भापति १९९ का खरूप और खान १२५, १४९ १९,२०१, / २०२, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525