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उपन्यास।
वैदिक और बौद्ध विद्वानोंने किया है। उन पारिभाषिक शब्दोंका व्यवहार जैन आगममें नहीं है । इससे फलित यह होता है कि आगमवर्णन किसी लुप्त प्राचीन परंपराका ही अनुगमन करता है। यद्यपि आगमका अंतिम संस्करण विक्रम पांचवी शताब्दीमें हुआ है तब भी इस विषयमें नई परंपराको न अपना कर प्राचीन परंपराका ही अनुसरण किया गया जान पडता है।
जैनागम चरकसंहिता तकशास उपायहदय न्यायसूत्र
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१. यापक १. भाविद्धदीर्घसूत्र- १. अविज्ञातार्थ १. अविज्ञात १. अविज्ञातार्थ
संकुलैाक्यदण्डकैः।
२. अविहान २. अज्ञान २. अविज्ञान २. अज्ञान २. सापक १.प्रतिष्ठापना ३. व्यंसक १.वाक्छल १.अविशेषखण्डन- १. अविशेषसमाजाति. १. लषक २.सामान्याल
२. सामान्यष्छल ४. आहरण
१.अपाय २. उपाय ३. सापनाकर्म १. खापना
२. परिहार १. प्रत्युत्पनलिनाशी १. प्रतिज्ञाहानि १. प्रतिज्ञाहानि - १. प्रतिज्ञाहानि ४. आहरणदेश
१. अनुशास्ति २. उपालम्भ १. उपालम्भ १. उपालम्भ - १. उपालम्म
२. बहेतु २. हेत्वाभास २. हेत्वाभास २. हेत्वाभास १. पृच्छा १. अनुयोग
१. प्रश्नबाहुल्यमुत्तराल्पता २. प्रभाल्पतोचरवाहुल्य
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४. बाहरणदोष
१.वर्मयुक्त - २. प्रतिलोम १ विरुद्धवाक्यदोष - ३. वाल्मोपनीत -
१. दुरुपनीत १ विरुद्धवाक्यदोष - १ युक्तिविरुद्ध ४. उपन्यास
१. तदस्तूपन्यास १ प्रतिष्टान्तखण्डन १ प्रतिदृष्टांतसमदूषण १ प्रतिष्टान्तसमाजाति २. तदन्यवस्तूपन्यास - ३. प्रतिनिभोपन्यास १ सामान्यच्छल १ अविशेषखण्डन १ विशेषसमाजाति
२ सामान्यच्छल ४ हेतूपन्यास १ अनुयोग
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