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पृ० २३. पं० १४] टिप्पणानि ।
१६१ चार्वाक के इस मन्तव्यमें निरालम्बनज्ञानवादी यो गा चार और मा ध्य मि क बौद्धों की स्पष्ट छाप है । ये ही बौद्ध सभी ज्ञानोंको निरालम्बन मानते हैं । क्योंकि उनके मतमें बाह्यार्थका अभाव है फिर मी प्रत्ययका अस्तित्व तो है । वे वासनाके बलसे निरालम्बन प्रत्ययोंकी उत्पत्ति घटाते हैं । चार्वा कों ने नै या यि का दि बाह्यार्थवादिओंकी युक्तिका आश्रय लेकरके सम्यग्ज्ञानोंको सविषय माना जब कि मिथ्याज्ञानोंको निरालम्बन सिद्ध करनेमें बौद्धों की युक्तिओंका उपयोग किया।
विपर्ययको भी सालम्बन माननेवालोंने चार्वाक को उत्तर यह दिया है कि यदि विपरीतप्रत्यय निरालम्बन है, उसमें ख या पर कुछ भी प्रतिभासित नहीं होता तब वह रजतज्ञान क्यों कहा जाता है।
दूसरी बात उन्होंने चार्वाक से यह कही है कि तुम्हारे मतसे सुप्तावस्था और भ्रम इन दोनोमें जब कुछ प्रतिभासित नहीं होता तब उक्त दोनो अवस्थाओंमें भेद क्या रहा।
यह चार्वा क संमत अख्यातिवाद प्रभा चन्द्र के पहलेके ग्रन्थों में देखा नहीं .जाता । मालूम होता है कि तत्त्वोपप्लव कार के भ्रमज्ञानके निराकरणको ही प्रभा चन्द्र ने चार्वाक संमत अख्यातिवाद मानकरके उसे अख्यातिवादी कहा है । उनका ऐसा कहना युक्तिसंगत ही है। क्योंकि तत्त्वोपप्लव कार भ्रमनिराकरणके प्रसंगमें बारबार कहता है कि "खविषयपर्यवसायिन्यो हि बुद्धयः" (पृ० १४, पं० २३ । पृ० १५, पं० २६)। और उसी प्रसंगमें उसने आलम्बनका निषेध किया है (पृ० १२)। ..
तस्वोपप्लवके शब्दोंका अनुवाद करके ही प्रभा चन्द्र ने अख्यातिवादको उपस्थित किया है। इससे स्पष्ट है कि चार्वाक संमत अख्यातिवादका मूल त खोपप्लव में ही है-देखो प्रमेयक० पृ० ४८ और तत्त्वो० पृ० ११ से।
(२) माध्यमिक संमत असत्ख्यातिवाद ।
सुषुप्ति अवस्थामें अर्थका प्रतिभास नहीं है और भ्रान्त प्रत्ययमें अर्थका प्रतिभास है यही दोनों अवस्थाका भेद है अत एव भ्रान्तप्रत्ययको चार्वाक की तरह निरालम्बन माना नहीं जा सकता । 'जिस अर्थका प्रतिभास होता है उसीको आलम्बन मानना उचित है! ऐसा मानते हुए मी माध्यमिक कहता है कि भ्रममें प्रतिभासका विषय कोई बाह्य सत् तो नजर आता नहीं अत एव उसमें असत् का ही प्रतिभास होता है ऐसा मानना चाहिए।
इस प्रकार माध्यमिक ने एक ही तीरसे दो पक्षिओंको मारनेकी उक्तिको सार्थक किया है । क्योंकि ज्ञानको सालम्बन मान करके भी यदि वह बाह्यार्थको आलम्बन नहीं मानता तो उसके मतसे एक प्रकारका निरालम्बनवाद ही सिद्ध होता है। इसी तरह वह यदि ज्ञानके विषयको असत् मानता है तो उसके मतानुसार प्रमाणके बलसे प्रमेयकी सिद्धि न होनेके कारण शून्यवाद ही सिद्ध होता है।
सारांश यह है कि माध्य गि क सभी वस्तुओंको असत् ही-निःखभाव ही मानता है। १. प्रमेयक० पृ०४९। २. विप्रह० का० १, २१-२३,६७ ।
न्या.२१
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