Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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टिप्पणानि ।
पृ० ६७. पं० १०. 'क्षीरे दधि' प्रासंगिक श्लोक ये हैं
" क्षीरे दधि भवेदेवं दनि क्षीरं घटे पटः । शशे शुक्रं पृथिव्यादौ चैतन्यं मूर्तिरात्मनि ॥ ५ ॥ अ गन्धो रसधानौ वायौ रूपेण तौ सह ।
व्योम्नि संस्पर्शिता ते च न चेदस्य प्रमाणता ॥ ६ ॥” श्लोकवा० अभाव |
. इसके साथ आंत मीमांसा की निम्न कारिकाएँ तुलनीय हैं.
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[ पृ० ६७, पं० १०
"कार्यद्रव्यमनादि स्यात् प्रागभावस्य निहवे ।
प्रध्वंसस्य च धर्मस्य प्रच्यवेऽनन्ततां व्रजेत् ॥ १० ॥ सर्वात्मकं तदेकं स्यादन्यापोहव्यतिक्रमे ।
- अन्यत्र समवाये न व्यपदिश्येत सर्वथा ॥ ११ ॥ "
पृ० ६७. पं० २३. 'अनवस्था' अर्घटने अनेकान्तवादमें जो अनवस्था दोष दिया है।
वही यहाँ उद्धृत है - हेतु० टी० पृ० ४३. ।
पृ० ६७. पं० २५. 'सर्वभावाः' तुलना -
"सर्वे भावाः स्वभावेन स्वस्वभावव्यवस्थितेः ।
स्वभावपरभावाभ्यां व्यावृत्तिभागिनो यतः ॥” प्रमाणवा० ३.३९ । “सर्वभावानां स्वस्वभावव्यवस्थितेः स्वभावसांकर्याभावात् ।" हेतु० टी० पृ० २४ । तथा पृ० २२,१९५ ।
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पृ० ६८. पं० ४. 'दृश्यत्वम्' बौद्ध तार्किकोंने अनुपलब्धिके दो प्रकार बताये हैंदृश्यानुपलब्धि और अदृश्यानुपलब्धि । उनमें से दृश्यानुपलब्धि ही अभावव्यवहारकी साधिका है अन्य नहीं । धर्म कीर्ति का कहना है कि पिशाचादिके सद्भाव होने पर भी अदृश्यानुपafaet संभव है क्योंकि पिशाचादि पदार्थ स्वयं दृश्य नहीं अत एव अदृश्यानुपलब्धि अभावका निश्चय नहीं करा सकती, संशयका हेतु है ।
"अनिश्चयफला होषा मालं व्यावृत्तिसाधने ।” प्रमाणवा ० ४.२७७ ।
"विप्रकृष्टविषयानुपलब्धिः प्रत्यक्षानुमाननिवृत्तिलक्षणा संशयहेतु:, प्रमाण निवृत्तावप्यर्थाभावासिद्धेरिति ।" न्यायबि० पृ० ५९ ।
दृश्यत्वका लक्षण धर्म कीर्ति ने इस प्रकार किया है - "उपलब्धिलक्षणप्राप्तिः - उपलम्भप्रत्ययान्तरसाकल्यं स्वभावविशेषश्च । यः सत्सु अन्येषूपलम्भप्रत्ययेषु सन् प्रत्यक्ष एव भवति स स्वभावः ।" न्यायवि० पृ० ३६ ।
किसी भी वस्तुकी दृश्यताके लिये दो शर्तें हैं- एक तो चक्षुरादि अन्य सभी ज्ञानजनक प्रत्ययोंकी उपस्थिति आवश्यक है तथा उस वस्तुका विशेष स्वभाव जिसके कारण प्रत्ययान्तरोंके साकल्य होने पर वह अवश्य प्रत्यक्ष हो ।
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धर्मोत्तर ने स्पष्टीकरण किया है कि जब किसी वस्तुको कोई द्रष्टा देखनेके लिये प्रवृत्त होता है और उसे देखता है तब समज लेना चाहिए उसमें उक्त दोनों बातें हैं । त्रिविप्रकृष्ट वस्तुओंका दर्शन उसी पुरुषको इस लिये नहीं होता है कि अन्य सामग्री मौजूद होते हुए भी उसमें दूसरी बात - विशेष स्वभावकी कमी है।
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