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प्रस्तावना।
आचार्य मैत्रेयने अनुमानके प्रतिज्ञा हेतु और दृष्टांत ऐसे तीन अवयव माने हैं । भद्रबाहुने भी उन्ही तीनोंको निर्दिष्ट किया है । माठर और दिग्नागने भी पक्ष, हेतु और दृष्टान्त ये तीन ही अवयव माने हैं और पांच अवयवोंका मतान्तर रूपसे उल्लेख किया है।
पांच अवयवोंमें दो परंपराएँ हैं एक माठरनिर्दिष्ट और प्रशस्तसंमत तथा दूसरी न्यायसूत्रादि संमत । भद्रबाहुने पांच अवयवोंमें न्यायसूत्रकी परंपराका ही अनुगमन किया है । पर दश अवयवोंके विषयमें भद्रबाहुका खातथ्य स्पष्ट है । न्यायभाष्यकारने भी दश अवयवोंका उल्लेख किया है किन्तु भद्रबाहुनिर्दिष्ट दोनों दशप्रकारोंसे वात्स्यायनके दशप्रकार भिन्न हैं। इस प्रकार हम देखते है कि न्यायवाक्यके दश अवयवोंकी तीन परंपराएँ सिद्ध होती हैं। यह बात नीचे दिये जानेवाले नकशे से स्पष्ट हो जाती है
मैत्रेय माठर दिमाग प्रशस्त न्यायसूत्र न्यायमाष्य
पक्ष
प्रतिज्ञा
हेतु
प्रतिज्ञा पक्ष
प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा अपदेश
हेतु हेतु दृष्टान्त दृष्टान्त दृष्टांत निदर्शन
उदाहरण उदाहरण उदाहरण अनुसन्धान उपनय उपनय उपनय प्रत्याम्नाय निगमन निगमन निगमन
जिज्ञासा संशय शक्यप्राति
प्रयोजन
संशयव्युदास भद्रबाहु
१० प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा
प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा
प्रतिज्ञा उदाहरण हेतु
प्रतिज्ञाविशुद्धि प्रतिज्ञाविभक्ति उदाहरण. दृष्टांत उपसंहार हेतुविशुद्धि
हेतुवि० निगमन दृष्टान्त
विपक्ष दृष्टान्तविशुद्धि प्रतिषेध उपसंहार
दृष्टांत उपसंहारविशुद्धि आशंका निगमन
तत्प्रतिषेध निगमनविशुद्धि
निगमन J. R. A.S, 1929, P. 476। २ प्रशस्तपादने उन्ही पांच अब को माना है जिनका निर्देश माठरने मतान्तररूपसे किया।
हेतु
हेतु
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