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प्रस्तावना |
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विशेषदृष्ट दृष्टसाधर्म्यत्रत् वह है जो अनेक वस्तुओं में से किसी एक को पृथक् करके उसके वैशिष्ट्य का प्रत्यभिज्ञान करता है । शास्त्रकारने इस अनुमानको भी पुरुष और कार्षापण के दृष्टान्तसे स्पष्ट किया है - यथा, कोई एक पुरुष बहुतसे पुरुषोंके बीचमेंसे पूर्वदृष्ट पुरुषका प्रत्यभिज्ञान करता है कि यह वही पुरुष है; या इसी प्रकार कार्षापण का प्रत्यभिज्ञान करता है, तब उसका वह ज्ञान विशेषदृष्ट साधर्म्यवत् अनुमान है' ।
अनुयोगद्वार में दृष्टसाधर्म्यवत् के जो दो भेद किये गये हैं उनमें प्रथम तो उपमानसे और दूसरा प्रत्यभिज्ञानसे भिन्न प्रतीत नहीं होता । माठर आदि अन्य दार्शनिकोंने सामान्यतोदृष्टके जो उदाहरण दिये हैं उनसे अनुयोगद्वारका पार्थक्य स्पष्ट है ।
उपायहृदयमें सूर्य-चन्द्र की गतिका ज्ञान उदाहृत है । यही उदाहरण गौडपादमें, शबर में, न्यायभाष्य में और पिंगलमें है ।
सामान्यतोदृष्टका एक ऐसा भी उदाहरण मिलता है - यथा, इच्छा दिसे आत्माका अनुमान करना । उसका निर्देश न्यायभाष्य और पिंगलमें है ।
अनुयोग, माठर और गौडपादने सिद्धान्ततः सामान्यतोदृष्टका लक्षण एक ही प्रकारका माना है भले ही उदाहरण भेद हो । माठर और गौडपादने उदाहरण दिया है कि "पुष्पिताम्रदर्शनात्, अन्यत्र पुष्पिता आना इति ।" यही भाव अनुयोगका भी है जब कि शास्त्रकारने कहा कि "जहा एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा ।" इत्यादि ।
अनुमान सामान्यका उदाहरण माठरने दिया है कि "लिङ्गेन त्रिदण्डादिदर्शनेन अदृष्टशेषि feat साध्यते नूनमसौ परिवास्ति, अस्येदं त्रिदण्डमिति ।" गौडपादने इस उदाहरण के साध्य साधन का विपर्यास किया है - "यथा दृष्ट्वा यतिम् यस्येदं त्रिदण्डमिति ।"
( उ ) कालभेदसे त्रैविध्य ।
अनुमान ग्रहण कालकी दृष्टिसे तीन प्रकारका होता है उसे भी शास्त्रकारने बताया है - अतीतकालग्रहण २ प्रत्युत्पन्नकालग्रहण और ३ अनागतकालग्रहण |
यथा
१ अतीतकालग्रहण - उत्तृण वन, निष्पन्नसस्या पृथ्वी, जलपूर्ण कुण्ड-सर-नदी- दीर्घिका - तडाग - इत्यादि देखकर सिद्ध किया जाय कि सुदृष्टि हुई है तो वह अतीतकालग्रहण है।
२ प्रत्युत्पन्नकालग्रहण - भिक्षाचर्या में प्रचुर भिक्षा मिलती देखकर सिद्ध किया जाय सुभिक्ष है तो वह प्रत्युत्पन्न काल ग्रहण है । `
३ अनागतकालग्रहण - बादलकी निर्मलता, कृष्ण पहाड, सविद्युत् मेय, मेघगर्जन,
१ " से जहाणामए केई पुरिसे कंचि पुरिसं बहूणं पुरिसाणं मज्झे पुण्वदिट्ठ पञ्चभिजाणिजा अयं से पुरिसे । बहूणं करिसावणाणं मज्झे पुष्वदिहं करिसावणं पञ्चभिजाणिजाअयं से करिसावणे ।"
२ उत्तणाणि बणाणि निष्पण्णसस्सं वा मेणि पुण्णाणि अ कुण्ड-सर-इ-दीहिभातडागाई पालिता तेणं साहिजा जहा सुवुट्टी आसी । ३ “साहुं गोअरग्गगयं बिच्छड्डिअपरभतपाणं पासिता तेणं साहिजद्द जहा सुभिक्खे वहई ।"
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