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अनुमानचर्चा ।
अनुयोगद्वार के शेषवत् के पांच भेदोंके साथ अन्य दार्शनिककृत अनुमानभेदों की तुलनाके
लिये नीचे नक्शा दिया जाता है
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'वैशेषिक
१ कार्य
२ कारण ३ संयोगी
४ समवायी
अनुयोगद्वार १ कार्य
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२ कारण
३ आश्रित
४ गुण
५ अवयव
योगाचारभूमिशास्त्र' 7 १ कार्य-कारण
२ कर्म ३ धर्म
४ खभाव
धर्मकीर्ति
१ कार्य
५ विरोधी
५ निमित्त
उपायहृदयमें शेषवत् का उदाहरण दिया गया है कि -
" शेषवद् यथा, सागरसलिलं पीत्वा तलवणरसमनुभूय शेषमपि सलिलं तुल्यमेव लवणमिति - " पृ० १३ ।
अर्थात् अवयवके ज्ञानसे संपूर्ण अवयवीका ज्ञान शेषवत् है ऐसा उपायहृदयका मत है ।
माठर और गौडपाद का भी यही मत है। उनका उदाहरण भी वही है जो उपायहृदयमें है । Tsing-mu (पिङ्गल) का भी शेषवत् के विषयमें यही मत है । किन्तु उसका उदाहरण उसी प्रकारका दूसरा है कि एक चावलके दानेको पके देखकर सभीको पक्क समझना' ।
अनुयोगद्वारके शेषवत् के पांच भेदोंमें से चतुर्थ 'अवयवेन' के अनेक उदाहरणोंमें उपायहृदनिर्दिष्ट उदाहरणका स्थान नहीं है किन्तु पिङ्गलसंमत उदाहरणका स्थान है।
न्यायभाष्यकार ने कार्य से कारणके अनुमानको शेषवत् कहा है और उसके उदाहरणरूप से नदीपूरसे वृष्टिके अनुमानको बताया है । माठरके मतसे तो यह पूर्ववत् अनुमान है । अनुयोगद्वारने 'कार्येण' ऐसा एक भेद शेषवत् का माना है पर उसके उदाहरण भिन्न ही हैं ।
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मतान्तरसे न्यायभाष्यमें परिशेषानुमानको शेषवत् कहा है । ऐसा माठर आदि अन्य किसीने नहीं कहा। स्पष्ट है कि यह कोई भिन्न परंपरा है । अनुयोगने शेषवत् के जो पांच भेद बताये हैं उनका मूल क्या है सो कहा नहीं जा सकता ।
२ स्वभाव
३ अनुपलब्धि
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(ई) दृष्टसाधर्म्यवत् ।
दृष्टसाधर्म्यवत् के दो भेद किये गये हैं - १ सामान्यदृष्ट और २ विशेषदृष्ट | किसी क वस्तुको देखकर तत्सजातीय सभी वस्तुका साधर्म्यज्ञान करना या बहुवस्तुको देखकर किसी विशेष में तत्साधर्म्यका ज्ञान करना यह सामान्यदृष्ट है ऐसी सामान्यदृष्टकी व्याख्या शास्त्रकारको अभिप्रेत जान पडती है । शास्त्रकारने इसके उदाहरण ये दिये हैं- जैसा एक पुरुष है अनेक पुरुष भी वैसे ही हैं, जैसे अनेक पुरुष हैं वैसा ही एक पुरुष है । जैसा एक कार्षापण है अनेक कार्षापण भी वैसे ही हैं, जैसे अनेक कार्षापण हैं एक भी वैसा ही है" ।
१ वैशे० ९.२.१ । २ J. R. A. S. 1929, P. 474 3 Pre-Dig. Intro XVIII. "से किं तं सामण्णदिङ्कं ? जहा एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा जहा वहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो । जहा एगो करिसावणो तहा वहवे करिसावणा, जहा बहवे करिसावणा तहा एगो करिसावणो ।”
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