Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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औपन्यचर्चा । (9) हेतुचर्चा | स्थानांगसूत्रमें हेतुके निम्नलिखित चार भेद बताये गये हैं - १ ऐसा विधिरूप हेतु जिसका साध्य विधिरूप हो । २ ऐसा विधिरूप हेतु जिसका साध्य निषेधरूप हो । ३ ऐसा निषेधरूप हेतु जिसका साध्य विधिरूप हो। ४ ऐसा निषेधरूप हेतु जिसका साध्य निषेधरूप हो। स्थानांगनिर्दिष्ट इन हेतुओंके साथ वैशेषिकसूत्रगत हेतुओंकी तुलना हो सकती हैस्थानांग
वैशेषिकसूत्र हेतु-साध्य १.विधि-विधि
संयोगी, समवायी, एकार्थ समवायी ३.१.९
भूतो भूतस्य-३.१.१३ २ विधि-निषेध
भूतमभूतस्य-३.१.१२ ३ निषेध-विधि
अभूतं भूतस्य ३.१.११ ४ निषेध-निषेध
कारणाभावात् कार्याभावः
भागेकै बौद्ध और जैन दार्शनिकोंने हेतुओंको जो उपलब्धि और अनुपलब्धि ऐसे दो प्रकारों में विभक्त किया है उसके मूलमें वैशेषिकसूत्र और स्थानांगनिर्दिष्ट परंपरा हो तो आश्चर्य नहीं ।
(४) औपम्यचर्चा । अनुयोगद्वार सूत्रमें औपम्य दो प्रकारका है-१ साधोपनीत और २ वैधोपनीत । १ साधोपनीत तीन प्रकारका है(अ) किञ्चित्साधोपनीत । (भा) प्रायः साधोपनीत । (३) सर्वसाधम्योपनीत ।
(अ) किश्चित्साधोपनीत के उदाहरण हैं - जैसा मंदर-मेरु है वैसा सर्षप है, जैसा सर्षष है वैसा मंदर है; जैसा समुद्र है वैसा गोष्पद है, जैसा गोष्पद है वैसा समुद्र है । जैसा भादिस्य है वैसा खद्योत है, जैसा खद्योत है वैसा आदिल्य है । जैसा चन्द्र है वैसा कुमुद है, जैसा कुमुद है वैसा चन्द्र है।'
"महवा हेऊ चविहे पन्नते तं जहा-अस्थित्तं अस्थि सो हेऊ १, अस्थित्तं पत्थि सो हेऊ २, णत्थितं अत्थि सो हेऊ ३, णस्थित्तं णस्थि सो हेऊ।"
"जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो, जहा समुहो तहा गोप्ययं, महा गोप्ययं तहा समुहो । जहा आइचो तहा खजोतो, जहा खज्जोतो तहा भाइयो, जहा बन्यो तहा कुमुदो जहा कुमुदो तहा चम्दो।"
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