Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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ज्ञानचर्चाकै विकासको भूमिकाएँ। अर्थ होता है सर्व - सकल और नोकेवलका अर्थ होता है असर्व-विकल । अत एव तार्किकोंके उक्त वर्गीकरणका मूल स्थानांग जितना तो पुराना मानना ही चाहिए। ___ यहाँ पर एक बात और भी ध्यान देनेके योग्य है । स्थानांगमें श्रुतनिःसृतके मेदरूपसे व्यानावग्रह और अर्थावग्रह ये दो बताये हैं । वस्तुतः वहाँ इसप्रकार कहना प्राप्त था
श्रुतनिःसृत
१ अवग्रह
२ ईहा
३ अवाय
४ धारणा
१व्यंजनावग्रह
२ अर्थावग्रह किन्तु स्थानांगमें द्वितीय स्थानकका प्रकरण होनेसे दो दो बातें गिनाना चाहिए ऐसा समझकर अवग्रह, ईहा, आदि चार. मेदोंको छोडकर सीधे अवग्रहके दो भेद ही गिनाये गये हैं।
एक दूसरी बातकी ओर भी ध्यान देना जरूरी है । अश्रुतनिःसृतके मेरूपसे भी व्यबर नावग्रह और अर्थावग्रहको गिना है किन्तु वहाँ टीकाकारके मतसे ऐसा चाहिए
अश्रुतनिःसृत
इन्द्रियजन्य
अनिन्द्रियजन्य
१ अवग्रह
२ ईहा
अबाय ४ धारणा
१ औत्पत्तिकी २ वैनयिकी ३ कर्मजा ४ पारिणामिकी १ व्यंजनावग्रह २ अर्थावग्रह
औत्पत्तिकी आदि चार बुद्धियाँ मानस होने से उनमें व्यञ्जनावग्रहका संभव नहीं । अतएव मूलकास्का कथन इन्द्रियजन्य अश्रुतनिःसृतकी अपेक्षासे द्वितीयस्थानकके अनुकूल हुआ है ऐसा टीकाकारका स्पष्टीकरण है । किन्तु यहाँ प्रश्न है कि क्या अश्रुतनिःसृतमें औत्पत्तिकी आदिके अतिरिक्त इन्द्रियजझानोंका समावेश साधार है ! और यह भी प्रश्न है कि आमिनिबोधिकके श्रुतनिःसृत और अश्रुतनिःसृत ऐसे भेद क्या प्राचीन है ! यानी क्या ऐसा भेद प्रथमभूमिकाके समय होता था!
नन्दीसूत्र जो कि मात्र ज्ञानकी ही विस्तृत चर्चा करनेके लिये बना है, उसमें श्रुतनिःसृतमतिके ही अवग्रह आदि चार भेद हैं । और अश्रुतनिःसृतके भेदरूपसे चार बुद्धिओंको गिना दिया गया है। उसमें इन्द्रियज अश्रुतनिःसृतको कोई स्थान नहीं है। अत एव टीकाकारका
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