Book Title: Nyayavatarvartik Vrutti
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Shantyasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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द्रव्य-पर्याय विचार |
एक ही कामें स्थित माना देशमें वर्तमान माना द्रव्योंने वा जविशेष को समानता भूत होती है वही तिर्यग्सामान्य द्रव्य है ।
जब यह कहा जाता है कि जीव मौ द्रव्य है, धर्मास्तिकाम मी द्रव्य है, अधमस्तिकाय भी इष्म है इत्यादि; या यह कहा जाता है कि द्रव्य दो प्रकारका है- जीव और अजीव । या यों कहा जाता है कि द्रव्य छः प्रकारका है- धर्मास्तिकाय आदि; तब इन सभी वाक्य द्रव्य शब्दका अर्थ तिर्यग्सामान्य है । और जब यह कहा जाता है कि जीव दो प्रकारका है संसारी और सिद्ध, संसारी जीवके पांच भेद हैं- एकेन्द्रियादि; पुद्गल चार प्रकारका हैस्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश और परमाणु; इत्यादि, तब इन वाक्योंमें जीव और पुद्गल शब्द तिर्यसामान्यरूप द्रव्यके बोधक है ।
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परंतु जब यह कहा जाता है कि जीव द्रव्यार्थिकसे शाश्वत है और भावार्थिकसे अशांत है' - तब जीव द्रव्यका मतलब ऊर्ध्वतासामान्यसे है। इसी प्रकार जब यह कहा जाता है कि अन्युच्छित्तिनयकी अपेक्षासे, नारक" शाश्वत हैं तब अव्युच्छित्तिनयका विषय जीव भी ऊर्ध्वतासामान्य ही अभिप्रेत हैं। इसी प्रकार एक जीवकी जब गति आगतिका विचार होता है अर्थात् जीव मरकर कहाँ जाता या जन्मके समय वह कहाँसे आता है आदि विचार झसंगमें सामान्य जीव शब्द या जीवविशेष नारकादि शब्द मी ऊर्ध्वंतासामान्यरूप जीवद्रव्यके ही बोधक हैं ।
जब यह कहा जाता है कि पुद्गल तीन प्रकारका है - प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विश्वासापरिणत; तब पुद्गल शब्दका अर्थ तिर्यग्सामान्यरूप द्रव्य है । किन्तु जब यह कहा जाता है कि पुगल अतीत, वर्तमान और अनागत तीनों कालोंमें शाचत हैं। तब पुनल शब्दसे ऊतासामान्यरूप द्रव्य विवक्षित है। इसी प्रकार जब एक ही परमाणुपुद्गलके विषयमें यह कहा जाता है कि वह द्रव्यार्थिक दृष्टिसे शाश्वत है तब वहाँ परमाणुपुद्गल द्रव्य शब्दसे ऊर्ध्वता सामान्य द्रव्य अभिप्रेत है ।
(ब) पर्यायविचार - जैसे सामान्य दो प्रकारका है वैसे पर्याय भी दो प्रकारका है। तिर्यद्रव्य या तिर्यसामान्यके आश्रयसे जो विशेष विवक्षित वे तिर्यक् पर्याय हैं और ऊर्ध्वतासामान्यरूप ध्रुव शाश्वत द्रव्यके आश्रयसे जो पर्याय विवक्षित हों वे ऊर्ध्वतापर्याय हैं। नाना देशमें स्वतन पृथक् पृथक् जो द्रव्य विशेष या व्यक्तियाँ हैं वे तिर्यद्रव्यकी पर्याये हैं उन्हें विशेष मी कहा जाता है । और नाना कालमें एक ही शाश्वत द्रव्यकी - ऊर्ध्वंतासामान्यकी जो नाना अवस्थाएँ हैं, जो नाना विशेष हैं वे ऊर्ध्वतासामान्यरूप द्रव्यके पर्याय हैं। उन्हें परिणाम भी कहा जाता है । 'पर्याय' एवं 'विशेष' शब्दके द्वारा उक्त दोनों प्रकारकी पर्यायोंका बोध यांगोंमें कराया गया है । किन्तु परिणाम शब्दका प्रयोग सिर्फ ऊर्ध्वता सामान्यरूप द्रव्यके पर्यायोंके अर्थ में ही किया गया है ।
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७ भगवती १.१.३७ । १.८.७२ । २ प्रज्ञापना पद १ । स्थानांग सू० ४५८ । ३ भगवती ०.२.२०३.१ ४ भगवती ०.३.२७९ । ५ भगवती शतक. २४. । भगवती ८.१ । ७ भगवती १.४.४२. । ८ भगवती १४.४.५१२ ।
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