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aaraहारिक प्रत्यक्ष के भेद :
सूत्र - द्विविधमपि सांव्यवहारिक प्रत्यक्षमवग्रहा वायधारणाभेदाच्चतुः प्रकारकम् ॥ ८ ॥ अर्थ- दोनों प्रकार का सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा के भेद से चार-चार प्रकार का है।
अवग्रह का लक्षण :
न्यायरत्नसार द्वितीय अध्याय
व्याख्या --~~सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के जो दो भेद ५वें सूत्र द्वारा प्रकट किये गये हैं वे प्रत्येक raग्रह, ईहा, अवाय और धारणा भेद वाले हैं । अवग्रहादि ज्ञानों के स्वरूप का कथन स्वयं ग्रन्थकार करने वाले हैं। तथा इस विषय को अधिक रूप से स्पष्ट जानने के लिये इसी ग्रन्थ को न्याय रत्नावली नाम की टीका देखनी चाहिये ॥ ८ ॥
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सूत्र विषय विषय संबन्धोद्भूतवर्शनामन्तरायान्तरसत्ता विशिष्ट वस्तु ग्रहणमवग्रहः ॥ ६ ॥
अर्थ - विषय - पदार्थ और विषयी - चक्षु आदि इन्द्रियों का यथायोग्य स्थान में सम्बन्ध होने पर सत्ता मात्र को विषय करने वाले दर्शन के बाद जो अवान्तर सत्ताविशिष्ट वस्तु को जानने वाला ज्ञान उत्पन्न होता है, वह अवग्रह कहा गया है ।
ईहा का लक्षण :
व्याख्या - पदार्थों का और इन्द्रियों का जब अपने उचित प्रदेश में सम्बन्ध होता है तब सत्तासामान्य को विषय करने वाला दर्शन होता है । यह दर्शन निराकार होता है। इसके बाद ही अवान्तर सत्ताविशिष्ट मनुष्य आदि वस्तु का ग्रहण होता है। कहने का तात्पर्य यही है कि इन्द्रियादिकों के द्वारा जो सब से पहले पदार्थ का ज्ञान होता है, वह अवग्रह है; जैसे यह मनुष्य है ॥ ६ ॥
सूत्र - अवग्रहगृहीतार्थोभूत संशयनिरासाय यत्न मी हा ॥ १० ॥
अर्थ - अवग्रह से जाने हुए पदार्थ में उत्पन्न हुए संशय को दूर करने की आकांक्षा रूप जो प्रयत्न है, उसका नाम ईहा है ।
व्याख्या- - जैसे यह पुरुष है, इस प्रकार से अवग्रह के द्वारा जान लेने पर "यह दक्षिणी है या गुजराती है" इस प्रकार का जो वहीं सन्देह हो जाता है, उस सन्देह को दूर करने वाला यह ईहा ज्ञान उत्पन्न होता है । इसी का नाम निर्णयाभिमुखी प्रवृत्ति है। अतः यह दक्षिणी होना चाहिये, इस प्रकार से इसकी प्रवृत्ति अवग्रह से गृहीत हुए अर्थ में होती है ॥ १० ॥
अवाय का लक्षण :---
धारणा का लक्षण :
सूत्र - ईहा मावित विशेषार्थावधारणमवायः ॥ ११ ॥
अर्थ - ईहा ज्ञान के द्वारा विषयभूत हुए अर्थ का विशेष रूप से निर्णय करने वाला जो ज्ञान है, उसी का नाम अवाय है ।
व्याख्या - "यह दक्षिणी होना चाहिये" ऐसा जो ईहा ज्ञान ने जाना है सो उस जाने हुए पदार्थ का उसकी भाषा आदि से पूर्ण निश्चय कर लेना कि यह दक्षिणी ही है, इसी का नाम अवाय है ।। ११ ।।
सूत्र - कालान्तरा विस्मरणहेतुर्धारणा ॥ १२ ॥