Book Title: Nyayaratna Sar
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 259
________________ न्याय रत्न त्यायरत्नावली टीका : पंचम अध्याय, रात्र ३४ १५६ अर्थ-साधर्म्य दृष्टान्ताभास के नौ भेद हैं--जो इस प्रकार से हैं-साध्य धर्म विकल दृष्टान्ताभास (१) साधन धर्म विकल दृष्टान्ताभास (२) साध्य साधनोभय विकल दृष्टान्ताभास (३) संदिग्ध साध्य धर्म वाला दृष्टान्ताभास (४) संदिग्ध साधन धर्म वाला दृष्टान्तामास (५) संदिग्ध उभय धर्मदाला दृष्टान्ताभास (६) अनन्वय दृष्टान्ताभास (७) अप्रदर्शितान्बय वाला दृष्टान्ताभास (८) और विपरीताम्वय वाला दृष्टान्ताभारा (९) । हिन्दी अनुवाद-अनुमानाभास के प्रसंग को लेकर पक्षाभासों और हेत्वाभासों का निरूपण करके अब सूत्रकार दृष्टान्ताभासों की प्ररूपणा कर रहे हैं । इसमें यह समझाया गया है कि साधर्म्य दृष्टान्न और वधर्म्य दृष्टान्त के भेद से दृष्टान्त दो प्रकार का बतलाया गया है । इसलिये साधर्म्य दृष्टान्ताभास और बैर्य दृष्टान्ताभास के भेद से दृष्टान्ताभास भी दो ही प्रकार का होता है । इनमें जो साधर्म्य दृष्टान्ताभास है वह नौ प्रकार का होता है-वे उसके नौ प्रकार ऊपर में प्रकट कर दिये गये हैं। इनका स्पष्टीकरण इस प्रकार से है-जब कोई इस प्रकार से कहता है कि 'अमूर्त होने के कारण दुःख की तरह पाब्द नित्य है' तो इस अनुमान प्रयोग में शब्द पक्ष, नित्य साध्य, अमूर्न हेतु और दुःख दृष्टान्त है । दृष्टान्त में साध्य और साधन दोनों रहते हैं । पर यहाँ जो दृष्टान्न दिया गया है वह साध्य जो नित्यत्व है उससे रहित है क्योंकि दुःख पुरुषकृत पापकर्म के उदय से होता है। इसी प्रकार जब कोई पिसा वाहता है कि शब्द नित्य है क्योंकि बह परमाणु की तरह अभून है तो यहाँ पर परमाणु दृष्टान्त में पौगलिक होने से अमूर्त स्वरूप हेतु नहीं ता है इसलिये यह साधन धर्म बिकल दृष्टान्ताभास है। इस प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि शब्द नित्य है क्योंकि वह घट की तरह अमूर्त है तो यहाँ घटरूप दृष्टान्त में न साध्य रहता और न साधन ही रहता है-इस कारण यह साध्य साबन उभयधर्मों से विकल होने के कारण दृष्टान्ताभास है। इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि यह पुरुष रागादि वाला है क्योंकि यह जिनदत्त की तरह वक्ता है। तो यहाँ पर जो जिनदत्त दृष्टान्त है वह संदिग्ध साध्य वाला होने से दृष्टान्ताभास रूप है क्योंकि अन्यजनों के मनोविकार प्रत्यक्ष होने के कारण ये उनमें हैं या नहीं यह जानना सन्देह से खाली नहीं होता है । इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि यह पुरुष मरणधर्म वाला है क्योंकि देवदत्त की तरह यह राग-द्वेष आदि वाला है | तो यहाँ पर जो दृष्टान्त देवदत्त है उसमें साध्य की सत्ता रहने पर भी हेतु की सत्ता संदिग्ध है इसलिए यह संदिग्ध साधन वाला दृष्टान्ताभास है। इसी प्रकार जद कोई ऐसा कहता है कि यह सर्वदर्शी नहीं है क्योंकि यह मुनि विशेष की तरह राग-द्वेष आदि वाला है तो यहाँ पर जो मुनि विशेष को दृष्टान्त के रूप में उपस्थित किया गया है उसमें साध्य और साधन ये दोनों संदिग्ध हैं । इसलिए यह सदिग्ध साध्य साधन उभय धर्म वाला दृष्टान्ताभास है । इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि यह पुरुष रागद्वेष आदि वाला है क्योंकि यह वक्ता है जैसा कि इष्टपुरुष तो यहां पर इष्टपुरुष रूप जो दृष्टान्त है उसमें यद्यपि साध्य और साधन का दोनों का सत्त्व है परन्तु फिर भी जो-जो वक्ता होता है वह-वह रागादि वाला होता है ऐसी अन्वय व्याप्ति नहीं बनती है इसलिए यह अनन्वय दृष्टान्ताभास है। इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहना है कि शब्द अनित्य है क्योंकि वह कृतक है जैसा कि घट, तो यहाँ जो घट दृष्टान्त है उसमें साध्य और साधन दोनों को सत्ता है परन्तु फिर भी जहाँ-जहाँ कृतकता होती है वहाँ-वहाँ अनित्यता होती है इस प्रकार से उसे वादी ने अपने वचन द्वारा प्रदर्शित नहीं किया है इस कारण यह अपदशितान्वय नाम का दृष्टान्ताभाम है। इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहना है कि शब्द अनित्य है क्योंकि वह कतक होता है जैसा कि घट तो यहाँ पर जो घटम्प दृष्टान्त है, उसमें साध्य

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