________________
न्यायरत्न : न्यायरत्नावली टीका पंचम अध्याय, सूत्र ३५-३६
१६१
हिन्दी व्याख्या - अनुमाना भास के प्रसङ्ग को लेकर पक्षाभासों और हेत्वाभासों का निरूपण करके अब सूत्रकार दृष्टान्ताभासों की प्ररूपणा कर रहे हैं। इसमें यह समझाया गया है कि साधर्म्य - दृष्टान्त और वैधर्म्यदृष्टान्त के भेद से दृष्टान्त दो प्रकार का बतलाया गया है इसलिए साधर्म्यदृष्टान्ताभास और वैधर्म्यदृष्टान्ताभास के भेद से दृष्टान्ताभास भी दो ही प्रकार का होता है। इनमें जो साधर्म्य दृष्टाताभास है वह नौ प्रकार का होता है वे उसके नौ प्रकार ऊपर में प्रकट कर दिये गये हैं, इनका स्पष्टीकरण इस प्रकार से है - जब कोई इस प्रकार से कहता है कि "अमूर्त होने के कारण दुःख की तरह शब्द नित्य है" तो इस अनुमान प्रयोग में शब्द पक्ष नित्य साध्य अमूर्त है और दुःख दृष्टान्त है । दृष्टान्त में साध्य और साधन दोनों रहते हैं, पर यहाँ जो दृष्टान्त दिया गया है वह साध्य जो नित्यत्व है उससे रहित है क्योंकि दुःख पुरुषकृत पापकर्म के उदय से होता है । इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि शब्द नित्य है क्योंकि वह परमाणु की तरह अमूर्त है तो यहाँ पर परमाणु दृष्टान्त में पौद्गलिक होने से अमूर्तस्वरूप हेतु नहीं रहता है इसलिए यह साधन धर्मविकल दृष्टान्ताभास है। इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि शब्द नित्य है क्योंकि वह घट की तरह अमूर्त है तो यहाँ घटरूप दृष्टान्त में न साध्य रहता है और न साधन ही रहता है इस कारण यह साध्य साधन उभयधर्मों से विकल होने के कारण दृष्टान्ताभास है । इसी प्रकार जत्र कोई ऐसा कहता है कि यह पुरुष रागादिवाला है क्योंकि यह जिनदत्त की तरह वक्ता है । तो यहाँ पर जो जिनदत्त दृष्टान्त है वह संदिग्ध साध्यवाला होने से दृष्टान्ताभासरूप है क्योंकि अन्य जनों के मनोविकार अप्रत्यक्ष होने के कारण वे उनमें हैं या नहीं यह जानना संदेह से खाली नहीं होता है । इस प्रकार जब कोई ऐसा कहना है कि यह पुरुष मरणधर्मवाला है क्योंकि देवदत की तरह यह रागद्वेप आदिवाला है तो यहाँ पर जो दृष्टान्त देवदत्त है उसमें साध्य की सत्ता रहने पर भी हेतु की सत्ता संदिग्ध है । इसलिए वह संदिग्ध साधनवाला दृष्टान्ताभास है। इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि यह सर्वदर्शी नहीं है क्योंकि यह सुनिर्विशेष की तरह रागद्वेष आदिवाला है तो यहां पर जो सुनिविशेषको दृष्टान्त के रूप में उपस्थित किया गया है उसमें साध्य और साधन ये दोनों संदिग्ध है, इसलिए यह संदिग्ध साध्य साधन उभय धर्मवाला दृष्टान्ताभास है, इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि यह पुरुष रागद्वेष आदि वाला है क्योंकि यह वक्ता है, जैसाकि इष्टपुरुष तो यहाँ पर इष्टपुरुषरूप रूप जो दृष्टान्त है उसमें यद्यपि साध्य और साधन का दोनों का सत्य है परन्तु फिर भी जो जो वक्ता होता है वह वह रागादिवाला होता है ऐसी अन्य व्याप्ति नहीं बनती है इसलिये यह अनन्वय दृष्टान्ताभास है। इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि शब्द अनित्य है क्योंकि वह कृतक है जैसा कि घट तो यहाँ जो घट दृष्टान्त है उसमें साध्य और साधन दोनों की सत्ता है परन्तु फिर भी जहाँ जहाँ कृतकता होती है वहाँ-वहां अनित्यता होती है इस प्रकार से उसे वादी ने अपने वचन द्वारा प्रदर्शित नहीं किया है। इस कारण यह अप्रदर्शितान्वय नाम का दृष्टान्ताभास है। इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि शब्द अनित्य है क्योंकि वह कृतक होता है जो-जो अनित्य होता है वह वह कृतक होता है जैसा कि घट तो यहाँ पर जो घटरूप दृष्टान्त है उसमें साध्य और साधन का दोनों का सद्भाव है परन्तु फिर भी उसने जो-जो कृतक होता है वह वह अनित्य होता है ऐसी अन्वयव्याप्ति न कहकर जो-जो अनित्य होता है वह वह कृतक होता है ऐसी विपरीत अन्वयव्याप्ति कही है और उसमें दृष्टान्त घट को प्रदर्शित किया है अतः यह विपरीतान्वय नाम का दृष्टान्ताभास है ।। ३५ ।।
सूत्र – वैधर्म्यदृष्टान्ताभासोऽप्यमेवासिद्ध संदिग्धव्यतिरेकाव्यति रेकोक्त्यादि योगात् ||३६|| संस्कृत टीका - साधर्म्यदृष्टान्ताभासं निरूप्य वैधर्म्यदृष्टान्ताभासं निरूपयति सूत्रकारस्तथाहि