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न्यायरत्नसार पंचम अध्याय
तकभिास
सूत्र-- असत्यामपि व्याप्तीतग्राहकस्ताभास ॥२०॥
प्यापा---निक होनेर भी व्याप्ति का ग्रहण करने वाला तर्क तकाभास कहा गया है। तर्क का लक्षण प्रकट करते समय यह बताया गया है कि माध्य साधन की व्याप्ति का जो ग्रहण करने बाला ज्ञान है वही तर्क है । परन्तु जहां पर यह लक्षण घटित नहीं होता है। अर्थात् व्याप्तिशून्य साध्य साधन में जो व्याप्ति ग्रहण करता है। जैसे-"गर्भस्थो मैत्रतनयः श्यामो भविष्यति मैत्रतनयत्वात्" मैत्र का पुत्र होने से गर्भस्थ मै अपुत्र काला होगा । क्योंकि जो-जो मैत्र-पुत्र होता है वह काला होता है सो ऐसी व्याप्ति ग्रहण करने वाला शान तकाभास है। क्योंकि मंत्र-पुत्र के साथ काले होने की व्याप्ति नहीं है ।।२०।। अनुमानाभास
सूत्र-- पक्षाभासादिजं जानमनुमानाभासम् ||२१॥
स्याख्या--तर्काभास का निरूपण करके अब सूत्रकार इस सूत्र द्वारा अनुमानाभास का निरूपण करते हैं। पक्ष, हेतु. दृष्टान्त, उपनय और निगमन ये अनुमान के पाँच अंग हैं। इनमें किसी भी एक अंग के लक्षण के मिथ्या होने पर अनुमान अनुमानाभास हो जाता है । जैसे—साध्य का लक्षण जो अप्रतीत, अनिराकृत, और अभीप्सित होता है वह साध्य है ऐसा कहा गया है। इनमें से यदि प्रतीत, निराकृत और अनभीप्सित साध्य से विशिष्ट पक्ष है तो वह पक्षाभास है वास्तविक पY नहीं है। क्योंकि साध्य से विशिष्ट ही तो पक्ष होता है । जब साध्य ही सदोष है तो उसका जो आधारभूत स्थान है-पक्ष है, वह निर्दोष कसे रह सकता है ? सूत्र में जो आदि शब्द प्रयुक्त हुआ है उससे हेत्वाभास, इप्टान्ताभास उपनयाभास और निगमनाभास का ग्रहण हुआ है । इन सब आभासों का कथन सूत्रकार स्वयं आगे करने वाले हैं । अतः यहां पर इनका स्पष्टीकरण नहीं किया गया है ॥२१॥
सूत्र-प्रतील बाधितानभिमत साध्य धर्म विशेषणभेदातत्रिविधः पक्षाभासः ॥रसा
व्याख्या-पक्षाभास तीन प्रकार का है-(१) प्रतीत साध्य धर्म विशेषण वाला (२) बाधित साध्य धर्म विशेषण वाला और (३) अनभीप्सित साध्य धर्म विशेषण वाला। इनमें जब कोई जैन मान्यता वालों के समक्ष ऐसा कहता है कि "अस्ति जीवः" जीव है। यहां पक्ष जीव है और "अस्ति" है-यह माध्य है तो उसका ऐसा कथन जैनों को प्रतीत होने के कारण प्रतीत साध्य धर्म विशेषण वाला पक्षाभास बन जाता है । हां यदि यहां पर प्रयोक्ता ऐसा कहता कि जीव अस्तित्व धर्म विशिष्ट ही है तो ऐसी एकान्त मान्यता जैनों को नहीं है । अतः वह प्रतीत साध्य धर्म विशेषण वाला पक्षाभास नहीं होता है। इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि "वहिरनुष्ण" अग्ति अनुष्ण-ठंडी हैं । यहां पर बह्नि पक्ष है और अनुष्यत्व साध्य है । पर वह्निरूप पक्ष में अनुष्णत्वरूप साध्य स्पर्शनेन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष से बाधित है । अतः यह पक्षबाधित साध्य धर्म विशेषण वाला पक्षाभास है। इसी प्रकार जब कोई जैन धर्मानुयायी ऐसा कहता है कि शब्द नित्य है या अनित्य ही है तो उसका यह कयन अनभीप्सित साध्य धर्म विशेषण बाला पक्षाभास की कोटि में आता है । क्योंकि जैन मान्यता प्रत्येक पदार्थ को अनेकधर्मात्मक मानती है । इस तरह जो पक्ष प्रसिद्ध साध्य धर्म वाला, बाधित साध्य धर्म वाला और अनिष्ट साध्य धर्म वाला होता है वह पक्षाभास हो जाता है ।।२२।।
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