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न्यायरत्नसार : पंचम अध्याय किसी-किसी की मान्यता है कि प्रमाण का विषय केवल सामान्य ही है या केवल विशेष ही है या परस्पर निरपेक्ष सामान्य-विशेष ही प्रमाण का विषय है-सो यह सब मान्यता विषयाभासरूप है ॥३६।। फलाभास :
सूत्र-प्रमाणातत्फलं सर्वथा भिन्नमभिन्न वेति फलाभासम् ।।४।।
व्याख्या-यह पीछे स्पष्ट किया जा चुका है कि प्रमाण का अज्ञाननिवृत्ति आदि रूप जो फल है वह प्रमाण से कथंचित् भिन्न भी है और कथंचित् अभिन्न भी है-इस सिद्धान्त को न मानकर केवल स्वमत-व्यामोह के कारण जो बौद्ध सिद्धान्त ने प्रमाण के फल को प्रमाण से सर्वथा अभिन्न, और नयायिक सिद्धान्त ने प्रमाण के फल को प्रमाण से सर्वथा भिन्न माना है सो ऐसी यह मान्यता फलाभासरूप है, ऐसा जानना चाहिये ॥ ४० ॥
।। पंचम अध्याय समाप्त ॥