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ज्यायरत्न : न्यायरत्नावली टीका : तुतीय अध्याय, सूत्र ५६-६१
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होने से यहां प्रशभादि रूप कार्य का अभाव अनुमित होता है । जिसका अभाव होता है वह स्वयं प्रतियोगी होता है जैसे घटाभाव का प्रतियोगी घट होता है। यहाँ पर प्रशमादि भावों का अभाव प्रकट करता है-सो प्रशमादिभावों के अभाव का प्रतियोगी प्रशमादिभाव हैं। और वे ही यहाँ प्रतिषेध्य कोटि में रखे गये हैं। जो प्रतिषेध करने योग्य होते हैं, वे ही प्रतिषेध्य होते हैं । इनका अविरोधी कारण तत्त्वार्थश्रद्धान है । उसके अभाव में प्रशमादिभाव-कषायादि की मन्दतारूप परिणति नहीं हो सकते हैं। अतः जब कारण काही अभाव है, तो फिर कार्य कसे हो सकता है ? यहाँ प्रतिषेध्याविरुद्ध कारणानुपलब्धि का उदाहरण है । इसी प्रकार से और भी इसके उदाहरण समझ लेने चाहिये ।। ५८ ॥
सूत्र-उत्तरफल्गुमी मुहन्ति नोद्गमिष्यति पूर्व फल्गुन्युदयामावारिति प्रतिषेध्याविरुद्ध पूर्वचरानुपलब्धेः ।। ५६ ॥
__ संस्कृत टीका-अन मुहूर्तान्ते उत्तरफागुन्युदयो निषेध्यः-प्रतिषेध्यः तदविरुद्धः पूर्वचरः पूर्वफरगुन्युदयः तम्यानुपलब्ध्या मुहूर्तान्ते उत्तरफल्गुन्युदया भावस्य अनुमितिर्भवति ।
हिन्दी व्याख्या-एक मुहूर्त के बाद उत्तरफल्गुनी का उदय नहीं होगा क्योंकि वर्तमान में पूर्वफल्गुनी का उदय नहीं हुआ है। यहाँ पर प्रतिषेध्य साध्य उत्तरफल्गुनी का उदय है। इसका अविरोधी पूर्वचर पूर्वफ्ल्गुनी का उदय है। पूर्वफल्गुनी के उदय होने के बाद ही एक मुहूर्त में उत्तरफल्गुनी का उदय होता है। अतः जब पूर्वफल्गुनीरूप अविरुद्ध पूर्वचर हेतु की अनुपलब्धि है, तो इससे यह अनुमिति हो जाती है कि एक मुहूर्त के बाद अभी उत्तरफल्गुनी का उदय होने वाला नहीं है। यह प्रतिषेध्याविरुद्ध पूर्वचरानुपलब्धि का दृष्टान्त है । और भी दूसरे दृष्टान्त इसी प्रकार से समझ लेन। चाहिये || ५६ ॥
सूत्र--नोगमन् मुहूतात्पूर्व भरणी. कृत्तिकोत्गमाभावादिति प्रतिषेध्याविरुद्योत्तरचरानुपलब्धेः ।। ६० ।।
संस्कृत टीका–अत्र प्रतिषेध्यो मुहूर्तात्पूर्व भरण्युदयः, तेन सहाविरुद्धोत्तरधरः कृत्तिका नक्षत्रीद्गमः, दस्यानुपलब्धिरधुनावत'तेऽतोमुहूर्तात् पूर्व भरण्युदयाभावस्यानुमितिर्भवतीति ।
हिन्दी व्याख्या-एक मुहूर्त के पहले भरणी का उदय नहीं हुआ है। क्योंकि कृत्तिका नक्षत्र का उदय अभी तक नहीं हो रहा है। यहाँ प्रतिषेध्य साध्य एक मुहूर्त के पहले भरणी का उदय होता है। उसके साथ अविरुद्ध उत्तरचर कृतिका है। उसके उदय नहीं होने से भरणी का उदयाभाव अमित होता है ।। ६० ॥
सूत्र--अस्य सम्यानानं नास्ति सम्यग्दर्शनानुपलम्माविति प्रतिषेच्याविरुद्ध सहचरानुपलब्धेः ।। ६१ ।।
संस्कृत टीका-अत्र प्रतिषेध्यं साध्यं सम्यग्ज्ञानं तस्य अविरुद्ध सहचरं सम्यग्दर्शनम्-तस्थानुपलब्ध्या सम्यग्ज्ञानाभावस्य अनुमितिर्भवति ।।
हिन्दी व्याख्या-इस पुरुष में सम्यग्ज्ञान नहीं है क्योंकि सम्यग्दर्शन का इसमें अभाव है । यहाँ पर प्रतिषेध्य साध्य सम्यग्ज्ञान है, और उसका अविरुद्ध सहचारी सम्यग्दर्शन है । इसके अभाव से पुरुष में सम्यग्ज्ञान का अभाव अनुमित होता है ॥६१ ॥