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न्यायरत्न : भ्यायरत्नावली टीका : चतुर्थ अध्याय, सूत्र ५ सूत्र -वर्णपदवाक्यात्मकः शब्दः ॥ ५ ॥
संस्कृत टीका-घटपटादि शब्देषु स्वाभाविकी स्वार्थबोधकता शक्ति प्रतिपाद्याधुना शब्दस्य स्वरूप जिज्ञामूनां कृते तत्स्वरूपं निगद्यते-"वर्णपद वाक्यात्मकः" इत्यादिना । तथा च शब्दस्त्रिविधी वर्णात्मक-पदात्मक-वाक्यात्मक भेदात् । तत्र पौद्गलिक भाषा वर्गणाभिनिष्पनोऽकारादि वर्ण रूपः शब्दो वत्मिकः, स च वासुदेवाभावानुकम्पादेः स्वार्थस्य च प्रतिपादको यथा "अ" शब्देन वासुदेवरूपार्थस्याभावरूपार्थस्यानुकम्पारूपार्थस्य च बोधो भवति, "इ" शब्देन कामदेव रूपार्थस्य बोधो भवति । एवमेव घटपटादि रूपः शब्दः पदात्मकः शब्दः, तेनापि घटस्पार्थस्य वस्त्ररूपार्थस्य क्रमशो बोधो भवति, “जिनदत्त आगच्छति, जिनेन्द्रः समवतरति" इत्यादिरूपः शब्दः वाक्यात्मकः शब्दः, अनेनापि जिनदत्तागमनरूपार्थस्य जिनेन्द्र समवसरणरूपार्थस्य च बोधो भवति अतो वर्णात्मकः पदात्मको वाक्यात्मकश्च शन्द्रः स्वार्थ बोधकता शक्तिविशिष्ट एवं स्वार्थबोधन समयों भवति नान्यथेति मन्तव्यम् ।
सूत्रार्थ-वर्णात्मक, पदात्मक, और वाक्यात्मक इस प्रकार से शब्द तीन प्रकार के होते हैं।
हिन्दी व्याल्या-पट पट आदि पदान्मक शब्दों में स्वाभाविक स्वार्थबोधकता शक्ति है । इस प्रकार से प्रतिपादन करके अब सूत्रकार शब्द के स्वरूप को जानने की अभिलाषा वालों के लिये इस सूत्र द्वारा शब्द का स्वरूप समझाते हैं
इसमें उन्होंने यह समझाया है कि प्रद वणमिक पदात्मक और वाक्यात्मक होता है। इनमें पौगलिक भाषा बर्गणा से जो अकारादि रूप शब्द निष्पन्न होता है वह वर्णात्मक शब्द है । यह वर्णात्मक शब्द वासुदेव, अभाव और अनुकम्पा आदि रूप अनेक अर्थों का कहने वाला होता है । जैसे-"अ" इस शब्द का अर्थ कोष में कुष्ण कहा गया है, और अभाव भी कहा गया है । "ई" शब्द का अर्थ कामदेव कहा गया है । घट पट आदि रूप जो शब्द है, वे पदात्मक शब्द हैं। ये घटरूप पदार्थ के और वस्त्र रूप पदार्थ के बोधक होते हैं । "जिनदत्त आता है, जिनेन्द्र समबसत होते हैं" इत्यादि रूप जो शब्द हैं, वे वाक्यात्मक शब्द हैं, और इनसे जिनदत्त के आगमन रूप अर्थ का और जिनेन्द्र के समवसृत होने रूप अर्थ का बोध होता है । इस तरह वर्णात्मक, पदात्मक और वाक्यात्मक जो शब्द हैं, वे अपने-अपने अर्थ को प्रतिपादन करने रूप स्वाभाविक शक्ति से विशिष्ट हुए ही स्वार्थ के प्रकाशन करने में समर्थ होते हैं, उससे रहित हुए वे अपने-अपने अर्थ को प्रकाशित करने में समर्थ नहीं होते हैं-ऐसा जानना चाहिये।
प्रश्न-यह किस प्रमाण के बल से आप कहते हैं कि शब्द पौद्गलिक है ?
उत्तर-शब्द पौदगलिक है, यह हम अनुमान के बल से कहते हैं । वह अनुमान इस प्रकार से है -'वर्णः पोद्गलिको मूतिमत्त्वात्यन्मूतिमत्तत्पीद्गलिक यथा पृथिव्यादि" वर्ण पौदगलिक है क्योंकि वह मूर्त है जो मूर्त-रूप-रस-गंध और सर्शवाला होता है वह पृथिवी आदि की तरह पौद्गलिक होता है।
१. "सद्दो बंधो सुहुमो थूलो संठाण मेंदतम,छाया।
उज्जोदादव सहिया पुग्गन दबस पाया" ॥-द्रव्यसंग्रहे ।