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द्वितीय अध्याय
प्रमाण के दो भेद:
सूत्र-प्रत्यक्षपरोक्षभेवास्ताप्रमाणं द्विविधम् ॥१॥
संस्कृत टीका-प्रथमाध्याये तावत्प्रमाणस्वरूपं निरूपितम् । सम्प्रति--अस्मिन् द्वितीयेऽध्याये प्रमाणविशेषरूपं प्रत्यक्ष प्रमाणं प्ररूपयितुं प्रथमं प्रमाणभेदं निरूपयति-प्रत्यक्ष-परोक्ष भेदादित्यादि, तथा च पूर्वोक्त ज्ञानात्मक प्रमाण प्रत्यक्षपरोक्षभेदाद् द्विविधं वर्तते । विशद प्रतिभासत्वं प्रत्यक्षत्वम्--- यस्य ज्ञानस्य प्रतिभासो विशदो भवति तदेव ज्ञानं प्रत्यक्षमिति, नतु इन्द्रियाधीनतया जायमानं ज्ञानं प्रत्यक्ष तस्य परोक्षत्वात् । अक्षशब्दस्यात्मवाचकतया अक्षम् आत्मानं प्रतिगतं सहायीकृत्य जायमानं-- ज्ञानं प्रत्यक्षमिति व्युत्पत्त: । नर्मल्यमेव ज्ञाने प्रत्यक्षत्व प्रयोजकम् । इन्द्रियजन्यं तु ज्ञानम् औपचारिक प्रत्यक्षम् ॥१॥
सूत्रार्थ-प्रथम अध्याय में जिसका वर्णन किया जा चुका है ऐसा वह ज्ञानात्मक प्रमाण प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से दो प्रकार का कहा गया है।
हिन्दी व्याख्या-प्रथम अध्याय में प्रमाण के स्वरूप का वर्णन अच्छी तरह से किया जा चुका है। इस द्वितीय अध्याग में अब सूत्रकार ने प्रत्यक्ष प्रमाण का क्या स्वरूप है, इसकी प्ररूपणा करने के लिये सर्वप्रथम उन्होंने प्रमाण के भेदों का निरूपण किया है। प्रमाण दो प्रकार का है-एक प्रत्यक्ष प्रमाण और दूसरा परोक्ष प्रमाण । जिस ज्ञान का प्रतिभास विशद होता है, वही प्रत्यक्ष प्रमाण है । इन्द्रियों की सहायता से उत्पन्न हुआ ज्ञान प्रत्यक्ष नहीं है। क्योंकि ऐसा ज्ञान परोक्ष माना गया है । जो केवल अक्षआत्मा की सहायता लेकर ही उत्पन्न होता है, वही प्रत्यक्ष माना गया है । ज्ञान में प्रत्यक्षता का प्रयोजक विशद प्रतिभास है, न कि इन्द्रियों से उसका उत्पन्न होना । हाँ, जो इन्द्रियजन्य ज्ञान है उसे उपचार से प्रत्यक्ष कह दिया जाये तो इसमें कोई विवाद नहीं है।
प्रश्न-प्रमाणों की संख्या तो अनेक प्रकार की मानी गई है-जैसे कोई एक प्रमाण मानता है, कोई दो प्रमाण मानता है। कोई तीन प्रमाण मानता है। कोई चार प्रमाण मानता है। कोई पाँच प्रमाण मानता है। और कोई छः प्रमाण मानता है । तो ऐसी स्थिति में "द्विविधम्" ऐसा कहना आपका कैसे उपादेय माना जा सकता है ? .
उत्तर-प्रमाण तो प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से दो ही प्रकार के हैं। इनसे अतिरिक्त और प्रमाण के भेद नहीं हैं। हाँ, अन्य सिद्धान्तकारों ने जो प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति और अभाव ये प्रमाण माने हैं, उन सबका अन्तर्भाव इन्हीं दो प्रमाणों में हो जाता है। इसका स्पष्टीकरण
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