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न्यायरत्नसार: पंचम अध्याय
व्यापा-पक्ष में हेतु का उपसंहार करना यह उपनय है और पक्ष में साध्य का उपसंहार करना यह निगमन है । ऐसा उपनय और निगमन का यथार्थ स्वरूप कहा गया है। परन्तु इस स्वरूप की अपेक्षा इनका विपरीत रूप से उपसंहार करना यह क्रमश: उपनयाभास और निगमनाभास है ! जैसे-जब कोई ऐसा कहता है यह पर्वत अग्निवाला है क्योंकि यह धूमवाला है जो-जो धुमवाला होता है वह वह अग्निवाला होता है जैसा कि रसोईघर यहां तक तो प्रतिज्ञावाक्य, हेतुवाक्य और दृष्टान्तवाक्य ये सब दार्शनिक पद्धति के अनुसार निर्दोष हैं परन्तु जब दुहराते समय ऐसा कहा जाता है कि यह पर्वत अग्नि वाला है इसलिये यह धुमवाला है ऐसा यह दुहरामा जो पक्ष में साध्य के उपसंहार रूप है वहीं उपनयाभास है क्योंकि इस प्रकार के इस उपसंहार से जहाँ-जहाँ अग्नि होती है वहाँ वहाँ धूम होता है ऐसी व्याप्ति बनाई गई प्रमाणित हो जाती है, परन्तु ऐसी व्याप्ति सदोष होने के कारण बनती नहीं है । क्योंकि अयोगोलक में इस व्याप्ति का व्यभिचार देखा जाता है। इसी प्रकार जब कोई ऐसा कहता है कि अग्नि- काला होने से ही यह पर्वत धुमवाला है तो यह पक्ष में हेतु का नुहाना निगमनाभाम है क्योंकि पहले हेतु को पक्ष में दुहराया जाता है और बाद में साध्य को दुहराया जाना है. यहाँ ऐसा नहीं किया गया है प्रत्युत विपरीत प से इनको दुहराया गया है इसी कारण इनमें नदाभासना आई है ।।३६|| आगमाभास :--
सूत्र--विप्रतारकादिवाक्य जन्यं ज्ञानमागमाभासम् ॥३७।।
ध्यास्या-विप्रतारक आदि जनों के वचनों से जो अर्थज्ञान होता है वह आगमाभास है । जैसेजब कोई विप्रतारक पुरुष ऐसा कहता है कि हे बच्चो ! गम्भीर नदी के तौर पर मोदक राशि पड़ी हुई है. दौड़ो-दोड़ो, आदि । इसी प्रकार से अदि कोई विप्रतारक भी नहीं है परन्तु यदि कोई हंसी-मजाक आदि में अयथार्थ वचन कहता है तो उन वचनों से जन्य ज्ञान भी अयथार्थज्ञान-आगमाभास हो है, ऐसा जानना चाहिए ।।३७॥ संख्याभास:
सूत्र.-उक्तप्रमाणहयातिरिक्तन्यूनाधिक तस्संख्यानं संख्याभासम् ।।३।।
व्याख्या-पूर्व में प्रमाण के दो भेद प्रकट किये गये हैं। उनसे अधिक या कम भेद प्रमाण के मानना, यह संख्याभास है। चार्वाक की प्रमाण की एक संख्या की मान्यता, वौद्धों की प्रत्यक्ष और अनुमान के भेद से दो संख्या की मान्यता, सांख्य की प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम के भेद से तीन संख्या की मान्यता, अक्षपाद की प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम और उपमान के भेद से चार संख्या की मान्यता, प्रभाकर की प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान और अपित्ति के भेद से पांच संख्या की मान्यता, तथा भट्ट को प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अपत्ति और अभाव के भेद से ६ संख्या की मान्यता संख्याभासरूप है, ऐसा जानना चाहिये ॥३०॥ विषयाभाम :
सूत्र-सामान्यमेव विशेष एव या निरपेक्ष तदुभयमेवप्रमाणविषय इति तस्य विषयाभासः ।३।। व्याख्या--सामान्य-विशेषात्मक पदार्थ ही प्रमाण का विषय है, ऐसा न मानकर जो ऐसी