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न्यायरत्नसार तृतीय अध्याय
अर्थ - यह व्याप्ति अन्तर्व्याप्ति और बहिर्व्याप्ति के भेद से दो प्रकार की कही गई है।
व्याख्या यह प्रकट किया जा चुका है कि साध्याविनाभावरूप व्याप्ति होती है । यह व्याप्ति पूर्वोक्त रूप से दो प्रकार की कही गई है। पक्ष में ही जो साध्य-साधन का साहचर्यरूप सम्बन्ध गृहीत कर लिया जाता है वह अन्तर्व्याप्ति है। जैसे - यह मेरा पुत्र घर में बोल रहा है क्योंकि यदि यह मेरा पुत्र न होता तो उसका ऐसा स्वर नहीं होता । यहाँ पर पक्ष मेरा पुत्र है. गृह में बोल रहा है. यह साध्य है और एवंविधस्वरान्यथानुपपत्ति यह हेतु है । यहाँ पर साधन की व्याप्ति साध्य के साथ मत्पुत्र रूप पक्ष में ही गृहीत हुई है बाहर में नहीं क्योंकि यहाँ दृष्टान्त का अभाव है । तथा जहाँ पर साध्य साधन की व्याप्ति पक्ष से अतिरिक्त दूसरे स्थल में गृहीत की जाती है वह बहिर्व्याप्ति है। जैसे -- यह पर्वत अग्नि वाला है क्योंकि इसमें से धूम निकल रहा है। जो धूम वाला होता है वह अग्नि वाला है जैसे - रसोईघर । यहाँ धूम और अग्नि की व्याप्ति रसोई में गृहीत की गई है ॥१६॥ अन्तर्व्याप्ति और बहिर्व्याप्ति का स्वरूप कथन :
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सूत्र - पक्षीकृते धर्मिणि तदन्यत्र च साध्यसाधनयोर्व्याप्तिग्रहोऽन्तर्व्यािप्तिः ॥२०॥ १६ वें सूत्र की व्याख्या से इस सूत्र का अर्थ स्पष्ट कर दिया गया है ।। २७ ॥
पक्ष प्रयोग की आवश्यकता :
सूत्र - पक्षे हेतोरुपसंहारवचनवत् साध्ये विवक्षिता धारता प्रदर्शनार्थं स प्रयोक्तव्यः ||२१|| अर्थ -- पक्ष में हेतु को दुहराने की तरह साध्य में विवक्षित आधारता प्रकट करने के लिये पक्ष का प्रयोग अवश्य करना चाहिये ।
व्याख्या - बौद्ध सिद्धान्त पक्ष का प्रयोग नहीं मानता है अतः उसका प्रयोग करना चाहिये, इस बात को प्रकट करने के लिये यह सूत्र कहा गया है। यद्यपि यह बात ठीक है कि जहाँ जहां घूम होता है। वहाँ-वहाँ अग्नि होती है। इतना निश्चय तर्क से हो जाता है और इस तरह पक्ष गम्यमान हो जाता है. परन्तु फिर भी साध्य का नियत पक्ष के साथ सम्बन्ध सिद्ध करने के लिये गम्यमान भी पक्ष का प्रयोग आवश्यक है । यदि पक्ष का प्रयोग न किया जावे तो साध्य कहाँ पर है ? पर्वत में है या रसोईघर में है ? ऐसा सन्देह दूर नहीं हो सकता है | अतः जिस प्रकार हेतु में विवक्षित आधारता प्रकट करने के लिये पुनः पक्ष में हेतु का प्रयोग किया गया निर्दोष माना गया है उसी प्रकार से गम्यमान भी पक्ष का प्रयोग निर्दोष मानना चाहिये ॥ २१ ॥
प्रकारान्तर से पक्ष प्रयोग का समर्थन :
सूत्र --- साधन समर्थनमिव पक्षप्रयोगोऽपर्यनुयोगार्हः ||२२||
अर्थ - जिस प्रकार हेतु का समर्थन किया जाता है उसी प्रकार पक्ष का प्रयोग भी अपर्य योगा है।
व्याख्या- - हेतु के प्रयोग के बाद जिस प्रकार उसका समर्थन किया जाता है, हेतु के प्रयोग के बिना उसका समर्थन नहीं हो सकता । उसी प्रकार पक्ष के प्रयोग बिना साध्य के आधार का निश्चित ज्ञान नहीं हो सकता है। तात्पर्य इस कथन का ऐसा है कि बौद्धों ने स्वयं इस बात को अङ्गीकार किया है कि हेतु प्रयोग किये बिना उसका समर्थन नहीं होता है और समर्थन हुए बिना वह अपने साध्य की