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न्यायरटनसार : तृतीय अध्याय स्थूल परिणामित्व श्यापक और किसी मनुष्य के द्वारा बनाया जाता साध्य हेतु-च्याप्य है । यह व्याप्य यहाँ उपलब्ध है और स्थूल परिणामित्व के अस्तित्व की सिद्धि करता है" ऐसा कथन भी इसी के अन्तर्गत समझना चाहिये । ।। ४०॥ अविरुद्ध कार्योपलब्धि का उदाहरण :
सूत्र-पशोडामम्निमान धूप पवाभादिशि विसीया ।।
अर्थ-इस पर्वत में अग्नि है क्योंकि यहाँ पर धूम की उपलब्धि हो रही है। यहाँ धूमरूप हेतु साध्य का-अग्नि का अविरुद्ध कार्य है और उसकी उपलब्धि पर्वत में हो रही है । अतः यह वहाँ अग्नि अस्तित्व सिद्ध करता है ।। ४१ ।। का अविरुद्ध कारणोपलब्धि का उदाहरण :
सूत्र-अस्त्यत्र छाया छत्रात ।। ४२ ।।
अर्थ--यहाँ छाया है क्योंकि उसके कारणभूत छत्र को उपलब्धि हो रही है, यहाँ छायारूप साथ्य का अविरुद्ध कारण छत्र है और उसकी उपलब्धि हो रही है । इससे छाया का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है। यहाँ ऐसी आशङ्का नहीं करनी चाहिये कि रात्रि में छत्र के अस्तित्व में भी छाया का अस्तित्व नहीं रहता है क्योंकि अन्धकार की अधिकता होने से उसमें वह छिप जाती है ।। ४२ ।। साध्याविरुद्ध पूर्वचरोपलब्धि का उदाहरण :
सूत्र-भविष्यति रोहिण्युदयः कृतिकोदयोपलम्भादिति चतुर्थी ।। ४३ ।।
अर्थ-रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा क्योंकि अभी कृतिका नक्षत्र का उदय हो रहा है। कृत्तिका नक्षत्र के बाद ही रोहिणी नक्षत्र का उदय होता है। यहाँ कृत्तिका नक्षत्र का उदय रूप हेतु रोहिणी नक्षत्ररूप साध्य का अविरुद्ध पूर्वचर है। इसलिये वह अपने उदय के बाद रोहिणी नक्षत्र के उदय का अस्तित्व प्रकट करता है, इसी प्रकार "कल रविवार होगा क्योंकि आज शनिवार है । यहाँ शनिवार रूप
ले रविवार के उदय का अविरुद्ध पूर्वचर हेतू है । इससे वह कल रविवार के होने की सत्ता सिद्ध करता है" यह कथन भी इसी के अन्तर्गत जान लेना चाहिये ।। ४३ ।। अविरुद्ध उत्तर चरोपलब्धि का उदाहरण :
सूत्र-उदगान्मुहत्तत्पूर्व पुनर्वसुः पुष्योदयोपलम्माविति पञ्चमी ।। ४४ ।।
अर्थ--एक मुहूर्त के पहिले पुनर्वसु नक्षत्र का उदय हो चुका है क्योंकि अभी पुष्य नक्षत्र का उदय हो रहा है । यहाँ साध्य पुनर्वसु नक्षत्र का उदय हो चुकना है और उसका अविरुद्ध उत्तरचर पुष्य नक्षत्र का हो रहा उदय है। इसकी उपलब्धि से उसके उदय हो चुकने का अनुमान किया गया है इमी प्रकार से “कल रविवार हो चुका है क्योंकि आज सोमवार है" इस प्रकार के कथन को इसी के अन्तर्गत जानना चाहिये ॥ ४४ ।। अविरुद्ध सहचरोपलब्धि का उदाहरण :
सूत्र-अस्मिन् सहकार फले रूपविशेषोऽस्ति समास्वायसान-रस-विशेषात् इति साध्याविरुद्धसहपरोपलब्धिः ॥ ४५ ॥
श्याख्या-इस आम में रूपविशेष है क्योंकि इस समय जो रस चखने में आ रहा है वह विशेष
देत हो