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मुनिसमाचन्द एवं उनका पपपुराण
लेकिन अभी गत वर्ष सन् १९८३ में ही मुझे एक और पद्मपुराण की खोज करने में सफलता प्राप्त हुयी है। प्रस्तुत पद्मपुराण महाकवि ब्रह्मजिनदास एवं त्र. गुणकीति के बाद की रचना है लेकिन उक्त पांचों कृतियों से प्राचीन है । इस प्रकार पद्मपुराण नाम से निबद्ध हिन्दी की सभी रचनाओं में प्रस्तुत पद्म पुराण सर्वाधिक प्राचीन है जिसका विस्तृत परिचय निम्न प्रकार है
ग्रन्थकर्ता- प्रस्तुत पदमपुराण के रचियता मुनि सभाचन्द है जिनका पुराण के प्रारम्भ में निम्न प्रकार उल्लेख हुआ है
सुभाचन्द मुनि भया मानन्द, भाषा करि चौपई छन्द । मुनि पुराण कीना मंडान, मुनि जन लोक सुनु दे कान ।।३।।
पुराण की समाप्ति पर लिखी गयी प्रशस्ति में उन्होंने सुभचन्द सेन के नाम का प्रयोग किया है जो उनके सेन गक्षीय भट्टारक परम्परा के मुनि होने का संकेत है। वे दिल्ली मंडल के मुनि थे जिनके पट्ट में और बहुत से मुनि हुए । ये कवि भी उसी परम्परा के मुनि थे । ये कुमारसेन भट्टारक मुनि के शिष्य थे । कवि ने ने अपनी गुरू परम्परा वा निम्न प्रकार उल्लेख किया है।
दिल्ली मंडल का मुनि राई, जिसके पट्ट भया बहु ठाई । धरम उपदेस घणा कु भया, पूजा प्रतिष्ठा जामै नया ।।४१।। पंडित पट धारी मुनि भए, ग्यानवंत करुणां उर थए । मलयकोत्ति मुनिवर गुणयंत, लिनक हिमे ध्यान भगवंत ।।४३|| गुणकीत्ति पर गुरगमनसेम, गुणानाद प्रकास जैन 1 भानकीरति महिमा अति घणी, विधायत तपसी मुनि ।।४।। कुमरसेन भट्टारक जती, क्रिया श्रेष्ठ उजल मती । उनके पट भचासुसेन, धरम बखान मुणा बन ||४||
इस प्रकार मुनि मलयकीति, गुणकीति, गुणभद्रसेन, भानुकीति, कुमरसेन' मुनि भट्टारक उग़की गुरू परम्परा थी। पद्मपुराण समाप्ति के पश्चात कवि ने अपना नाम मुनि सभाचन्द इस प्रकार उल्लेख किया है
इति श्री पद्मपुराण सभाचन्द्र कृत सांपूरनं । रचना स्थान
इस प्रकार सभाषन्द कवि मुनि थे तथा वे काष्ठासंघीय सेन गण के मुनि थे। दिल्ली मंडल उनका केन्द्र था इसलिए ऐसा भी प्रतीत होता है कि समाचन्द मुनि