Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 12
________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पपपुराण तथ्य संग्रहीत हैं उन्हीं के प्राधार पर एवं गुरु परम्परा से प्राप्त कथानकों के प्राधार पर जैन पुराणों की रचना की गई है। नवीं शताब्दि में शीलंकाचार्य ने चउपन्न महापुरिस परिय लिखा जिसमें राम लक्खण चरिय भी दिया हुआ है। यह कथा विमलसरि के पचमचरिय से प्रभावित है इसी तरह भटेश्वरकृत कहावली के अन्तर्गत रामायणम एवं मुवनतुग मूरि कृत सीया परिय तथा राम लक्षण परिय कधायें प्राप्त होती हैं। संस्कृत भाषा में प्राचार्य रविषेण का पचरितम् (पद्मपुराण) रामकथा से सम्बन्धित प्राचीनतम रचना है जिसकी रचना वीरनिर्वाण संवद १२०४ तथा विक्रम संवत ७३४ में की गई थी। यह पुराण १२३ पर्यों में विभक्त है तथा १८००० श्लोक प्रमाण की बड़ी भारी कृति है । रामकथा का ऐसा सुन्दरतम वर्णन मस्कुन भाषा में प्रथम बार किया गया है । १२ वी शताब्दि में प्राचार्य हेमचन्द्र ने विष्ट गलाकापुरुष चगिल में रामकथा का प्रच्छा वर्णन किया है। १५ वी शताब्दि में वह जिनदास ने पद्मपुराण की रचना करने का गौरव प्राप्त किया । यह पुराण : सगो में विभक्त है तथा १५००० फ्लोक प्रमाण है। पुराण की भाषा सरल एवं आकर्षक है। १६ वीं शताब्दि में भष्ट्रारक सोमसेन ने वैराट नगर (राजस्थान) में रामपुराण की रचना समाप्त की थी तथा १७ वीं शताब्दि भट्टारक धर्मकीति ने पद्मपुराण की 1612A.D. में रचना करके रामकथा को और मी लोकप्रियता प्रदान की। मुनि चन्द्रकीति द्वारा रचित पद्मपुराण की रचना प्रामेर शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। अपनश भाषा में महाकषि स्वयम् में पउमचरिउ की रचना करने का यशस्वी कार्य किया । पउमचरित एक विशाल महाकाव्य है जो पांघ काण्डों-विद्याधर काण्ड, पयोध्या काण, सुन्दर काण्ड, युद्ध काण्ड एवं उत्तर काण्ड में विभक्त है। पांच काण्ड एवं संषियों में काब्य बद्ध है। स्वयम्भ ८ थी ६ वीं शताब्दि के महान् कवि थे जिसे महा पण्डित राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी का प्रथम कवि स्वीकार किया है । १५ वीं शताब्दि में महाकवि राष हए जिन्होंने अपम्र में विशाल काथ्यों एवं पुराणों की रचना की। उन्होंने बलभद्रपुराण (पद्मपुराण) की रचना करने का गौरव प्राप्त किया था। लेकिन जब हिन्दी का युग प्रारम्भ हुना तो जन कवि इस भाषा में भी रामकथा को काब्य रूप में निवद करने में सबसे प्रागे रहे। सर्वप्रथम १. प्रशस्ति संग्रह- संपादक डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल पृष्ठ संख्या ३० २. वहीं पृष्ठ संम्मा १६

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