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प्रस्तावना
महाकवि ब्रह्मजिनदास ने राम सीतारास (रामराम) की रचना करके रामकया को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। रामरास की रचना संवत् १५०८ (सन् १४५१) में की गई थी। रामरास विशाल महाकाव्य है जिसको पाण्डुलिपि में ३०० से भी अधिक पत्र हैं। ब्रह्म जिनदास के समान ही उनके शिष्य १० गुणकीति में भी रामसीतारास की रचना करने का श्रेय प्राप्त किया । लेकिन प्र० गुणकीति के पश्चात् करीब २०० वर्षों तक किसी भी भट्टारक अथवा विद्वान ने राम कथा पर लेखनी नहीं पलायी। ग्रड़ आश्चर्य की बात है । इसके पश्चात् अब तक जिन कवियों की रचनाओं की खोज हो चुकी है उनमें निम्न रचनावों के नाम उल्लेखनीय हैं :
रचना
लेखक सीताचरित्र रामचन्द्र अपरनाम बानक सीता हरण- ब्रह्म जयसागर पद्मपुराण भाषा पं स्तुशालचन्द काला
रचनाकाल संवत् १७१३ संवत् १७६२ संवत् १७८३
पद्मपुराण भाषा पंदौलतराम कासलीवाल संवत् १८२३
(गद्य) पद्मपुराण भाषा भगवानदास
संवत् १७५५ जक कातियों में पं दौलतराम कासलीवाल द्वारा निबद्ध पचमपुराण भाषा सबसे अधिक लोकप्रिय माना जाता हैं । इसी का समाज में सबसे अधिक स्वाध्याय हुना है और प्राज भी यह पुराण सर्वत्र पढ़ा जाता है। दौलतराम ने इसकी जयपुर में रचना की थी। इसकी भाषा एवं शैली दोनों ही आकर्षक है । इसके अतिरिक्त 4 सभी राम काव्य पभी तक अपने प्रकाशन की प्रतीक्षा में
१. संवत गन्नर प्रठोतरा मांगसिर मास विशाल ।
शुक्ल पक्ष चादिसि दिनी रास कियो गुणमाल' ।। २. राजस्थान के जैन सन्त -- व्यक्तित्व एवं कृत्तिख पूंछ संख्या १८६ ३. प्रशस्ति संग्रह - पृष्ठ संख्या २६६ ४. वही
२६७ ५. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों को ग्रन्थ सूची द्वितीय भाग पृ. सं. २१५
वही
यही