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प्रतिष्ठापन समिति-१. जो प्रदेश दृष्टि के अगोचर हैं उस स्थान पर किसी भी प्रकार के मल के निक्षेपण का निषेध किया है । २. संयमियों को नाक एवं कफ के मल को डालकर उसके ऊपर वालू डाल देना चाहिये । ३. दिवाल को पिच्छी से मार्जन करके खुजाल आदि करना चाहिये । ४. क्योंकि बिना यत्नाचार से मल-मूत्रादि के त्याग करने वाले के स जीवों का मो घात होता है तो स्पावर जीवों की तो बात ही क्या । अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले को इस प्रतिष्ठापन समिति का पालन अवश्य करना चाहिये । ५. जो इन पांचों समितियों का पालन करने में शिथिलता करते हैं, बे निन्दनीय एवं प्रमादी हैं। उनके अहिंसादि सब मत नष्ट हो जाते हैं एवं उन्हें अनन्त संसार में परिभ्रमण करना पड़ता है। पाठकगण स्वयं इस शास्त्र के पठन से अनुभव करेंगे कि आचार्यों ने कितना रहस्यात्मक वर्णम किया है।
तृतीय अधिकार आचार्यों ने ४३८ श्लोकोंमें ५ इंद्रिय निरोध एवं षट् प्रावश्यकों का विस्तृत वर्णन किया।
चक्ष इंद्रिय निरोष-१. चक्ष इन्द्रिय निरोध नामक मूलगुण का वर्णन बहुत ही सारगर्भित किया है। २. मोक्षार्थी को चित्त मोहित करने वाले वस्त्र अथवा वस्त्र के किनारे भी नहीं देखना चाहिये । ३. मुनियों को भोगोपभोग के पवित्र पदार्थों को भी नहीं देखना चाहिये। ४. राजा. सामंत भादि की सेना को देखना भी रौद्रध्यान का कारण है। ५. सम्यग्दृष्टियों को कुदेवादि एवं छः अनायतन को भी नहीं देखना चाहिये । ६. प्रारमशुद्धि के लिये राग को उत्पन्न करने वाले नगर आदि को भी नहीं देखना चाहिये । ७. कदाचित् राग की वृद्धि कारक पदार्थ दिख भी जाय तो दृष्टि नीची कर लेना चाहिये । ८. इंद्रिय को नहीं जीतने वाले के मन की अपलता से ब्रह्मचर्य भी नहीं टिक सकता है। अत: मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि के लिये पक्ष इंद्रिय का निरोध करमा चाहिये ।
श्रोत इन्द्रिय निरोष-श्रोत इन्द्रिय के कथन में १.माचार्य श्री कहते हैं कि मोक्षार्थों को ६ प्रकार के स्वरों को राग पूर्वक नहीं सुनना चाहिये। २. श्रृंगार रस आदि को बढ़ाने वाले शास्त्र को भी नहीं सुनना चाहिये । ३. विक्रथा, परनिन्दा, कुकाव्य को सुनने से बुद्धि विपरीत होती है एवं सम्यग्दर्शन भी छूट जाता है । ४. राग-द्वेष को उत्पन्न करने वाले शब्दों को नहीं सुनना चाहिये।
प्राण इग्निध निरोप-धारण इन्द्रिय निरोध करने के लिये १. मोक्षार्थी को सुगन्धित पदार्थों में राग एवं दुर्गंधित पदार्थों में द्वेष नहीं करना चाहिये।
मिला इंद्रिय निरोष-१. बिह्वा इन्द्रिय का निरोध उसी के होता है जो जिह्वा को मनोज लगने वाले षट्रस मिश्रित पदार्थों में गृढता धारण नहीं करते । २. जो मूर्ष मुनि राग-द्वेष पूर्वक पाहार करते हैं, उनके पग-पग पर कर्म बंध होता है। ३. जो यति, राक्षणी एवं सर्पिणी के
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