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है। ३. जो सदा काल मौन धारण करने में असमर्थ हो उसे सत्य व अनुमय भाषा बोलने की प्रेरणा दी है। ४. दस प्रकार को निंद्य भाषाओं के त्याग की प्रेरणा दी है। ५. व्रती पुरुष को ब्रह्मचर्य का घात करने वाली स्त्री आदि विकथा भी कभी नहीं करना चाहिये । ६. धर्म कथा के अलावा किसी भी प्रकार की कथा त्यागियों को न तो करनी ही चाहिये, न सुनना ही चाहिये । ७. वधकारी वचनों को कहने का निषेध किया है। ८. संघ के दोष का कथन भी पाप का कारण बताते हुए और भी अनेकों दोषों का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है।
ऐषणा समिति-१. ठण्डा, गर्म जैसा शुद्ध प्रासुक भोजन श्रावक के यहां मिले वैसा ही ले लेना ऐषणा समिति है। २. भोजन के ४६ दोषों को ८ भेदों में गर्भित कर संक्षेप में भेदों का कथन किया । ३. अन्य आचार सार के कथनानुसार आचार्य श्री ने ऐषणा समिति के दोषों का कथन किया । जो पानी बहुत देर पहले गरम किया हो और ठण्डा हो गया हो ऐसा जल संयमियों को नहीं लेना चाहिये । आगे आचार्य श्री ने ६ कारणों से आहार ग्रहण करे व ६ कारणों से माहार का त्याग करने की प्रेरणा दी है। ४. दस प्रकार के अशन दोष में छठ दायक दोष में वेश्या टो. दासी हो. अजिका हो या लाल वस्त्र पहनने वाली हो ऐसी स्त्री दान देथे अथवा मुनि लेवे तो दायक दोष उत्पन्न होता है। ( ४४६ गाया ) ५. तदनन्तर १४ मल दोषों का वर्णन करते हुए उत्तम, मध्यम, जघन्य मलों का भेद दर्शाया है। ६. शुद्ध भोजन की खोज करके आहार लेने वाले मुनि अधः कर्म दोषों से दूषित नहीं होते। भोजन चर्या के काल का कथन करते हुए धनी, निर्धन का भेद नहीं करना चाहिये । ७. पुन: ५ प्रकार की गोचर बृत्ति का कथन किया है एवं भोजन के कालादि ३२ प्रकार के अन्तराय का कथन किया है। स्वाद को छोड़कर भोजन करना चाहिये । ८. थकान आदि की अपेक्षा के बिना श्रावकों के घर में नहीं बैठना चाहिये। ९. मुनियों को कभी दिन में नहीं सोना चाहिये एवं १०. विकथादि करने, धर्म ध्यान के दुर्लभ काल को व्यर्थ व्यतीत नहीं करना चाहिये ।
मावान निक्षेपण समिति—१. इस समिति के कथन में आचार्य श्री ने ज्ञान, संयम एवं शौचोपकरण को अच्छी तरह देख-भाल कर रखने एवं उठाने की प्रेरणा दी है। २. पाटा संस्तर आदि को हिलाना-चलाना नहीं चाहिये क्योंकि ऐसा करने से जीवों की विराधना होती है । ३. नहीं हिलने वाले संस्तरादि पर बैटना व सोना चाहिये । ४. दुःप्रतिलेखना के त्याग की प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री ने अच्छी तरह पहले देखकर फिर सावधानी पूर्वक पिच्छी से मार्जन करने की प्रेरणा दी है । ५. जो मुनि आदान निक्षेपण समिति का पालन करते हैं, उन्हीं के अहिंसा महाव्रत पूर्ण रीति से पालन होता है। ६. जो इस समिति का पालन नहीं करता है वह मुनि शिथिलाचारी व जीवों की विराधना करने वाला होता है । ७. अन्त में आचार्य मुनिराज को आदेश देते हैं कि तुम इस भनेक गुणों की खानि मादान निक्षेपण समिति का पालन करो।