Book Title: Mulachar Pradip
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ f६) अधिक दाह होने पर भी वस्त्र से, वस्त्र के कोने से, पंखे से, पत्र से. दूसरों के द्वारा भी घायु नहीं करवाना चाहिए। अधिक उष्णता से पीड़ित होने पर भी वायुकायिक जीवों को नाच करने वाली वायु अपने मुख से नहीं निकालना चाहिये। (५} हाथ-पैर आदि के द्वारा अनन्त जीवों का नाश करने वाली वनस्पति को विराधना नहीं करनी चाहिये। अहिंसा महावत को ५ भावना में वचन गुप्ति के स्थान पर ऐषणा समिति का वाचन किया है और चार भावनामों का वर्णन तत्त्वार्थ सूत्र के सदृश्य हो किया है । सत्य महानत १. सत्य महावत के स्वरूप का निर्देश करते हुए आचार्य ने अर्हत मुद्राधारी मुनिराज को निर्मल, कल्याणकारो, वैराग्य की स्थिरता वाले गुरण को वृद्धि करने वाले शुभ वचन हो बोलने की प्रेरणा दा है। २. पागमानुकूल वचन नहीं बोलने के समय मौन ही धारण करने की प्रेरणा दी है एवं असत्य के दूषण बताते हुए आचार्य कहते हैं कि विष खा लेना, विष्टा सा लेना तो अच्छा है परन्तु असत्य बोलना कभी अच्छा नहीं है। ३, अनेक गुणों से सम्पन्न मुनि मसत्य भाषण से चाण्डाल के समान नि समझा जाता है। ४. तत्त्वार्थ के सदृश्य ही सत्य महापत की भावना भाने की प्रेरणा दी है। प्रचौर्य महाव्रत-[१] अचौर्य महावत का वर्णन करते हुए आचार्य श्री ने कण्ठगत प्राण होने पर भी बिना दिया हुअा द्रध्य एवं संयम को हानि करने वाला द्रव्य लेने का निषेध किया । [२] पंच परमेष्ठी की जिस द्रव्य से पूजा को है, उस निर्माल्य द्रव्य को कभी नहीं लेना चाहिये। [३] निर्माल्य द्रव्य लेने वाले को नरक में आने से कोई नहीं बचा सकता। [४] दन्त शुद्धि करने के लिए भो आचार्य महावतधारी के लिये बिना दिये तृण भी न ग्रहण करने का आदेश दिया है । अचार्य महावत को शुद्ध रखने वाली भावनाओं का बहुत रहस्यात्मक वर्णन किया है जो कि तत्वार्थ सूत्र से विदृश्य है-(क) याचना नहीं करना (ख) किसी को कुछ अाशा नहीं देना (ग) किसी पदार्य में ममत्व नहीं रखना । (घ) निर्दोष पदार्थ का सेवन करना (ङ) साधर्मी पुरुषों के साष पास्त्रानुकल वर्ताव करना । विशेष अत्यन्त गम्भीरता से विचारा जाय तो तत्त्वार्थ सूत्र में कथित भावनाओं का सार प्राचार्य ने अपने शब्दों में किया है। ब्रह्मचर्य महाव्रत - इस महानत का वर्णम तो बहुत ही सुन्दर ढंग से किया गया है। १. ब्रह्मचारी को स्त्री संसर्ग ही कलंक का कारण है। ऐसा मानकर ब्रह्मचारी को कोमन बिछौने एवं प्रासन पर बैठने का निषेध किया है। २. स्त्री का मुख देखना मात्र ही अनेक मनर्ष का कारण है तो साक्षात् स्त्री संसर्ग कलत का कारण क्यों नहीं होगा। ३. ब्रह्मचारियों को स्थो के अङ्गार कसा, [ २६ ]

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