Book Title: Mulachar Pradip Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ उक्त कृतियों के अतिरिक्त प्रभो और भी रचनाएं हो सकती हैं जिनको अभी खोज होना बाकी है। भट्टारक सकलकीति को संस्कृत भाषा के समान राजस्थानी भाषा में मो कोई बड़ी रचना frent afहये, क्योंकि इनके प्रमुख शिष्य ब्र० जिनदास ने इन्हीं की प्रेरणा एवं उपदेश से राज्यस्थानी भाषा में ५० से भी अधिक रचनाएं निबद्ध की हैं। उक्त संस्कृत कृतियों के अतिरिक्त पंचपरमेष्ठी पूजा द्वादशानुप्रेक्षा एवं सारचतुविशतिका श्रादि और भी कृतियां हैं जो राजस्थान के शास्त्र भंडारों में उपलब्ध होती हैं। ये सभी कृतियां जंन समाज में लोकप्रिय रही हैं तथा उनका पठन-पाठन भी खूब रहा है । भट्टारक सकलकोसि की उक्त संस्कृत रचनाओं में कवि का पाण्डित्य स्पष्ट रूप से झलकता है । उनके काव्यों में उसी तरह की शैली, अलंकार, रस एवं छन्दों को परियोजना उपलब्ध होती है जो धन्य भारतीय संस्कृत काव्यों में मिलती है। उनके चरित काव्यों के पढ़ने से प्रा रवास्वादन मिलता है । चरित काव्यों के नायक सठशलाका के लोकोत्तर महापुरुष हैं जो अतिशय पुण्यवान हैं. जिनका सम्पूर्ण जीवन प्रत्यधिक पावन है। सभी काव्य शान्तरस पर्यवसानी हैं। काव्य ज्ञान के समान भट्टारककीत सिके थे। उनका मूलाधार प्रदोष, प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, सिद्धान्तसार दीपक एव तत्त्वार्थसार दीपक तथा कर्मविपाक जैसी रचनाएं उनके अगाध ज्ञान के परिचायक है। इसमें जैन सिद्धान्त आचार -शास्त्र एवं तस्वचर्चा के उन गूढ रहस्यों का निचोड़ है जो एक महान विद्वान् थपनी रचनाओंों में भर सकता है । इसी तरह सद्भाषितावलि उनके सर्वागज्ञान का प्रतीक है- जिसमें सकलकीति ने जगत के प्राणियों को सुन्दर शिक्षाएं भी प्रदान की हैं, जिससे वे अपना श्रात्म-कल्याण करने की घोर असर हो सके । वास्तव में वे सभी विषयों के पारगामी विद्वान् थे। ऐसे सन्त विद्वान को पाकर कौन देश गौरवान्वित नहीं होगा ? राजस्थानी रचनाएं - सलकीर्ति ने हिन्दी में बहुत ही कम रचना निबद्ध की है। इसका प्रमुख कारण सम्भवतः इनका संस्कृत भाषा की मोर अत्यधिक प्रेम था। इसके अतिरिक्त जो भी इनकी हिन्दी रचनाएं मिली हैं वे सभी लघु रचनाएं हैं जो केवल भाषा अध्ययन की दृष्टि से ही उल्लेखनीय कही जा सकती हैं । सकलकीति का अधिकांश जीवन राजस्थान में व्यतीत हुआ था। इनकी रचनाओंों में राजस्थानी भाषा की स्पष्ट छाप दिखलाई देती है। इस प्रकार भट्टारक सकलकीति ने संस्कृत भाषा में ३० प्रम्थों की रचना करके मां भारती को अपूर्व सेवा की और देश में संस्कृत के पठन-पाठन का जबरदस्त प्रचार किया । [२७]Page Navigation
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